Verse: 9,24
मूल श्लोक :
अहं हि सर्वयज्ञानां भोक्ता च प्रभुरेव च। न तु मामभिजानन्ति तत्त्वेनातश्च्यवन्ति ते।।9.24।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।9.24।।क्योंकि मैं ही सम्पूर्ण यज्ञोंका भोक्ता और स्वामी हूँ परन्तु वे मेरेको तत्त्वसे नहीं जानते? इसीसे उनका पतन होता है।
।।9.24।। सभी यज्ञों का भोक्ता और स्वामी एक आत्मा ही है। आत्मा ही विभिन्न देवता शरीरों में व्यक्त हुआ है? जिसके कारण उन देवताओं को अपनीअपनी सार्मथ्य प्राप्त हुई है। उनका कृपाप्रसाद प्राप्त करने के लिए भक्तजन उनकी आराधना करते हैं। भगवान् यहाँ कहते हैं कि श्रद्धापूर्वक इन पूजकों द्वारा जिन देवताओं का यज्ञादि में आह्वान किया जाता है? उनका मूल अव्ययस्वरूप मैं ही हूँ। यह पूजा चाहे मन्दिर में हो या मस्जिद में? गिरजाघर में हो या गुरुद्वारे में। परन्तु क्योंकि वे मेरी परिच्छिन्न शक्तियों के अधिष्ठाता देवताओं की ही पूजा करते हैं? इसलिए वे मुझे अपने आत्मरूप में नहीं जानते? जो अनन्तस्वरूप हैं। परिणाम यह होता है कि पुन संसार के शोकमोह और असंख्य बन्धनों में घिर जाते हैं।इसी सिद्धांत को व्यावहारिक जीवन में लागू करें? तो ज्ञात होगा कि उन सभी कार्यक्षेत्रों में जहाँ लोग परिश्रम (यज्ञ) करते हैं? वह सदैव किसी न किसी अनित्य लाभ या फल (देवता) को प्राप्त करने के लिए ही होता है। वे आध्यात्मिक विकास के लिए परिश्रम नहीं करते? जिससे कि वे अपने शुद्ध आत्मस्वरूप को पहचान सकें। कामुकता की फिसलन भरी ढलान पर चलते हुए वे क्रूर पाशविकता के स्तर तक गिर जाते हैं? जो कि मानव के पद और प्रतिष्ठा पर एक बड़ा कलंक है।पूर्ण सुख और सन्तोष? परम शान्ति और समाधान हृदय के अन्तरतम भाग में स्थित हैं? न कि बाह्य जगत् के लाभ और सफलता में? यश और कीर्ति में। हृदय में स्थित इस शाश्वत लाभ की ओर ध्यान न देकर? कामनाओं के बिच्छुओं से दंशित अविवेकी मनुष्य इतस्तत दौड़ते हैं? और इस प्रकार अपने साथसाथ उस मार्ग पर चलने वाले अन्य लोगों के लिए भी दुर्व्यवस्था और दुख उत्पन्न करते हैं। जब ऐसे मोहित लोगों की पीढ़ी स्वच्छन्दता को प्रोत्साहित कर उपभोग का ही जीवन जीती है? और एक क्षण भी रुककर अपने कर्मों का मूल्यांकन करने पर कदापि ध्यान नहीं देती? तब अवश्य ही? उस पीढ़ी का इतिहास विस्फोटित जगत् के मुख पर? उसी विस्फोट से मृत और अपंग हुए लोगों के उस रक्त से लिखा जाता हैं? जो पुत्रों और पतियों से वियुक्त हुई माताओं और विधवाओं के अश्रुओं से मिश्रित होता है। निश्चय ही? वे र्मत्यलोक के दुखों को पुन लौटते हैं।हम यह कैसे कह सकते हैं कि अविधिपूर्वक पूजन करने पर भी वे भक्तजन किसी फल को प्राप्त करते हैं इस पर कहते हैं --
English Translation By Swami Sivananda
9.24 (For) I alone am the enjoyer and also the Lord of all sacrifices; but they do not know Me in essence (in reality), and hence they fall (return to this mortal world).