Verse: 7,10
मूल श्लोक :
बीजं मां सर्वभूतानां विद्धि पार्थ सनातनम्।बुद्धिर्बुद्धिमतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम्।।7.10।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।7.10।।हे पृथानन्दन सम्पूर्ण प्राणियोंका अनादि बीज मुझे जान। बुद्धिमानोंमें बुद्धि और तेजस्वियोंमें तेज मैं हूँ।
।।7.10।। परिपक्व बुद्धि के जिज्ञासुओं के लिये पूर्व के दो श्लोकों में दिये गये उदाहरण तत्त्व को समझने के लिए पर्याप्त हैं किन्तु मन्द बुद्धि के पुरुषों के लिए नहीं। अत यहाँ भगवान् श्रीकृष्ण कुछ और उदाहरण देते हैं। समस्त भूतों का सनातन कारण मैं हूँ। जैसे एक चित्रकार अपने चित्र को और अधिक स्पष्ट और सुन्दर बनाने के लिये नयेनये रंगों का प्रयोग करता है वैसे ही मानो अपने संक्षिप्त कथन से संतुष्ट न होकर भगवान् श्रीकृष्ण और भी अनेक दृष्टान्त देते हैं जिनके द्वारा हम दृश्य जड़ जगत् तथा अदृश्य चेतन आत्मतत्त्व के सम्बन्ध को समझ सकें।बुद्धिमानों की बुद्धि मैं हूँ एक बुद्धिमान व्यक्ति अपने आदर्शों तथा विचारों के माध्यम से अपने दिव्य स्वरूप को व्यक्त कर पाता है। उस बुद्धिमान् पुरुष के बुद्धि की वास्तविक सार्मथ्य आत्मा के कारण ही संभव है। उसी प्रकार तेजस्वियों का तेज भी आत्मा ही है।दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि आत्मा ही बुद्धि उपाधि के द्वारा बुद्धिमान व्यक्ति के रूप में प्रकट होता है। जैसे विद्युत ही बल्ब में प्रकाश हीटर में उष्णता और रेडियो में संगीत के रूप में व्यक्त होती है।आगे कहते हैं
English Translation By Swami Sivananda
7.10 Know Me, O Arjuna, as the eternal seed of all beings; I am the intelligence of the intelligent; the splendour of the splendid objects am I.