Verse: 6,45
मूल श्लोक :
प्रयत्नाद्यतमानस्तु योगी संशुद्धकिल्बिषः।अनेकजन्मसंसिद्धस्ततो याति परां गतिम्।।6.45।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।6.45।।परन्तु जो योगी प्रयत्नपूर्वक यत्न करता है और जिसके पाप नष्ट हो गये हैं तथा जो अनेक जन्मोंसे सिद्ध हुआ है वह योगी फिर परमगतिको प्राप्त हो जाता है।
।।6.45।। मनुष्य अपने पूर्व जन्म में संचित संस्कारों के अनुसार स्थूल शरीर के द्वारा जगत् में कर्म करता है। ये वासनाएं ही उसके विचारों को दिशा प्रदान करती हैं और उन्हीं के अनुसार वर्तमान में कर्मों की योग्यता निश्चित होती है। मन और बुद्धिरूप अन्तकरण में स्थित इन वासनाओं को पाप अथवा चित्त की अशुद्धि कहते हैं। इनके क्षय का उपाय हैं कर्मयोग।सर्वप्रथम पाप वासनाओं का त्याग करते हुए पुण्यमय रचनात्मक संस्कारों का संचय करना चाहिए। ध्यानाभ्यास में ये पुण्य संस्कार भी विघ्नकारक सिद्ध हो सकते हैं। तथापि अभ्यास को निरन्तर बनाये रखने से जब मन अलौकिक आन्तरिक शान्ति में स्थिर हो जाता है तब पुण्य वासनाएं भी समाप्त हो जाती हैं। वासनाक्षय के साथ मन और अहंकार दोनों ही नष्ट हो जाते हैं और यही परम गति अथवा आत्म साक्षात्कार की स्थिति है।यद्यपि इस सिद्धांत का वर्णन पुस्तक के अर्ध पृष्ठ में ही किया जा सकता है परन्तु इसमें पूर्ण सफलता प्राप्त करना अनेक जन्मों के सतत प्रयत्नों का फल है। यहाँ अनेकजन्मसंसिद्ध शब्द का स्पष्ट प्रयोग किया गया है जो अत्यन्त उपयुक्त है क्योंकि मनुष्य का विकास कोई रंगमंच पर खेला गया संन्धयाकालीन नाटक नहीं वरन् अनेक युगों में की गई उन्नति का इतिहास है। तत्त्वदर्शी ऋषियों का यह सही विचार है।जिस पुरुष में जीवन को समझने की प्रवृत्ति आत्मसाक्षात्कार के लिए व्याकुलता विषय सुख की व्यर्थता को जानने की क्षमता ऋषियों के पदचिन्हों पर चलने का साहस परम शान्ति की इच्छा नैतिक जीवन जीने की सार्मथ्य और परम लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने की तत्परता होती है वही वास्तव में मनुष्य कहलाने योग्य होता है। ऐसा ही श्रेष्ठ साधक पुरुष सत्य के मन्दिर में प्रवेश पाने का अधिकारी होता है।यदि ध्यानाभ्यास में हमारी रुचि है तत्त्वज्ञान की जिज्ञासा है और दिव्य जीवन जीने का हममें साहस है तो इसी क्षण यही वर्तमान जन्म हमारा अन्तिम जन्म हो सकता है।गीता के अध्येता जानते हैं कि यह कोई नवीन मौलिक अर्थ नहीं बताया गया है। जो पवित्र शास्त्र ग्रन्थ पुन पुन सत्य की घोषणा करता हुआ मनुष्य में आशा और उत्साह का संचार करता चल आ रहा है जिसमें कहीं भी नरक में जाने का भय नहीं दिखाया गया है उसके सम्बन्ध में ऐसा नहीं माना जा सकता कि अकस्मात् उसने उपदेश में परिवर्तन करके मनुष्य को अनेक जन्मों के पश्चात् ही मुक्ति का आश्वासन दिया है। यद्यपि अनेक धर्म प्रवंचक इस प्रकार का विपरीत अर्थ करते हैं तथापि बुद्धिमान पुरुष को धोखा नहीं दिया जा सकता। यहाँ बताये हुए अनेक जन्म ज्ञान प्राप्ति के पूर्व के हैं और न कि भावी।इसलिए
English Translation By Swami Sivananda
6.45 But the Yogi who strives with assiduity, purified of sins and perfected gradually through many births, reaches the highest goal.