Verse: 6,42
मूल श्लोक :
अथवा योगिनामेव कुले भवति धीमताम्।एतद्धि दुर्लभतरं लोके जन्म यदीदृशम्।।6.42।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।6.42।।अथवा (वैराग्यवान्) योगभ्रष्ट ज्ञानवान् योगियोंके कुलमें ही जन्म लेता है। इस प्रकारका जो यह जन्म है यह संसारमें बहुत ही दुर्लभ है।
।।6.42।। इस श्लोक में ऐसे निष्काम साधक की गति दर्शायी गयी है जिसे स्वर्गादि लोकों की कोई आवश्यकता नहीं रहती। निष्कामभाव से की गई उपासना के फलस्वरूप योगी को शुद्धान्तकरण तथा एकाग्रता प्राप्त होती है जिसके द्वारा वह ध्यान की उच्च साधना करने योग्य बन जाता है। इस प्रकार के श्रेष्ठ साधक को ऐसा अवसर प्रदान करना चाहिए कि वह देहत्याग के पश्चात् सीधे ही पुन इस लोक में जन्म लेकर अपने मार्ग पर अग्रसर हो सके। उसे स्वर्ग जाने की आवश्यकता नहीं क्योंकि वह वैराग्यवान् है जबकि स्वर्ग भोग भूमि है। भगवान् कहते हैं कि ऐसा निष्काम साधक मृत्यु के पश्चात् तत्काल ही ज्ञानवान् योगियों के कुल में जन्म लेता है जहां वह अप्ानी साधना को निर्विघ्न पूर्ण कर सकता है।आजकल मनुष्य के दुराचरण के लिए बाह्य वातावरण एवं परिस्थितियों को ही दोषी बताकर सबको अपने आसपास के वातावरण के विरुद्ध उत्तेजित किया जाता है परन्तु उपर्युक्त श्लोकों में कथित सिद्धांत इस प्रचलित मान्यता का खण्डन करता है। निसन्देह ही मनुष्य एक सीमा तक बाह्य परिस्थितियों से प्रभावित होता है परन्तु दर्शनशास्त्र की दृष्टि से देखने पर ज्ञात होगा कि सभी मनुष्य वर्तमान में जिन वातावरण एवं परिस्थितियों में रह रहे हैं उनका कारण भूतकाल में किये गये उन्हीं के अपने कर्म ही हैं। बाह्य परिस्थितियों के परिवर्तन मात्र से व्यक्ति में वास्तविक सुधार नहीं हो सकता। यदि मदिरापान के अभ्यस्त व्यक्ति को किसी ऐसे नगर में ले जाये जहाँ सुरापान वर्जित है तो वह व्यक्ति वहां भी छिपकर मदिरापान करता ही रहेगा।श्रीशंकराचार्य ईसामसीह गौतम बुद्ध तथा अनेक अन्य महापुरुषों के उदाहरण विचाराधीन श्लोक में कथित सिद्धांत की पुष्टि करते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि ऐसे मेधावी पुरुष विरले ही होते हैं जिनमें कुमार अवस्था में ही अलौकिक बुद्धिमत्ता एवं ईश्वरीय ज्ञान के दर्शन होते हैं। भगवान् स्वयं कहते हैं कि इस प्रकार का जन्म लोक में अति दुर्लभ है। पूर्व श्लोक में कहा गया है कि रागयुक्त योगी स्वर्ग प्राप्ति के पश्चात् जन्म लेता है जबकि यहाँ वैराग्यवान् योगभ्रष्ट के विषय में कहते हैं कि वह सीधे ही ज्ञानी योगी के घर में जन्म लेकर पूर्णत्व प्राप्ति के मार्ग पर अग्रसर होता है।योगाभ्यास के लिए अनुकूल वातावरण में जन्मे हुए योगभ्रष्ट पुरुष की स्थिति क्या होती है भगवान् कहते हैं
English Translation By Swami Sivananda
6.42 Or he is born in a family of even the wise Yogis; verily a birth like this is very difficult to obtain in this world.