Verse: 6,27
मूल श्लोक :
प्रशान्तमनसं ह्येनं योगिनं सुखमुत्तमम्।उपैति शान्तरजसं ब्रह्मभूतमकल्मषम्।।6.27।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।6.27।।जिसके सब पाप नष्ट हो गये हैं जिसका रजोगुण तथा मन सर्वथा शान्त हो गया है ऐसे इस ब्रह्मस्वरूप योगीको निश्चित ही उत्तम (सात्त्विक) सुख प्राप्त होता है।
।।6.27।। पूर्व श्लोकों के विवेचन से यह स्पष्ट हो गया है कि शनै शनै मन को आत्मस्वरूप में स्थिर करने से वृत्तिप्रवाह के साथ मन भी समाप्त हो जाता हैं। मन के निर्विषयी होने पर मनुष्य को आत्मा का शुद्ध स्वरूप में अनुभव होता है और स्वाभाविक ही वह परम सुख को प्राप्त होता है।एक बुद्धिमान साधक को उक्त कथन को चुनौती देने का पूर्ण अधिकार है। क्योंकि शास्त्रीय विषयों में शास्त्रविदों को यह अधिकार नहीं कि वे अपने मत को प्रतिपादित करके विद्यार्थियों से अपेक्षा रखें कि वे उस मत को वैसा ही स्वीकार कर लें। दूसरी पंक्ति में कारण बताते हैं कि क्यों और किस प्रकार मन के शांत होने पर आत्मा का स्वत साक्षात् अनुभव होता है। कारण यह है कि मन को शांत आनन्दस्वरूप आत्मा में स्थिर करने के प्रयत्न में पूर्वसंचित वासनाएं क्षीण पड़ जाती हैं और वासनारहित मन को ही निष्पाप (अकल्मष) कहते हैं।वेदान्त में मन की अशुद्धि को कहते हैं मल। आत्मतत्त्व का अज्ञान (आवरण) और उससे उत्पन्न मन के विक्षेप संयुक्त रूप से मल कहलाते हैं। आवरण तमोगुण का कार्य है जबकि तज्जनित विक्षेप रजोगुण का। यही मनुष्य का दुखमय संसार में पतन का कारण है। भगवान् के इन शब्दों में इसका स्पष्ट निर्देश मिलता है (क) शांतरजस और (ख) अकल्मष।तमोगुण और रजोगुण के प्रभाव से मुक्त पुरुष को आत्मज्ञानी ही मानना पड़ेगा। जब तक विक्षेप है तब तक मन का अस्तित्व है और उसके साथ आत्मा के तादात्म्य से जीवभाव उत्पन्न होता है अर्थात् वह साधक जो ध्यानाभ्यास में प्रवृत्त होता है ध्यानविधि के अनुसार मन के साथ के तादात्म्य की निवृत्ति होने पर जीव अपने शुद्ध आत्मस्वरूप को पहचान लेता है। ब्रह्मभूत शब्द से अद्वैत सत्य की स्पष्ट घोषणा यहाँ की गयी है जिसके अर्थानुसार योगी स्वयं ब्रह्म स्वरूप ही जाता है।अब भगवान् यह बताते हैं कि आत्मसाक्षात्कार के पश्चात् ज्ञानी पुरुष का सम्पूर्ण जीवन किस प्रकार उस अऩुभव से युक्त होता है
English Translation By Swami Sivananda
6.27 Supreme Bliss verily comes to this Yogi whose mind is ite peaceful, whose passion is ieted, who has become Brahman and who is free from sin.