Verse: 6,22
मूल श्लोक :
यं लब्ध्वा चापरं लाभं मन्यते नाधिकं ततः।यस्मिन्स्थितो न दुःखेन गुरुणापि विचाल्यते।।6.22।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।6.22।।जिस लाभकी प्राप्ति होनेपर उससे अधिक कोई दूसरा लाभ उसके माननेमें भी नहीं आता और जिसमें स्थित होनेपर वह बड़े भारी दुःखसे भी विचलित नहीं किया जा सकता।
।।6.22।। No commentary.
English Translation By Swami Sivananda
6.22 Which, having obtained, he thinks there is no other gain superior to it; wherein estabished, he is not moved even by heavy sorrow.