Verse: 6,20
मूल श्लोक :
यत्रोपरमते चित्तं निरुद्धं योगसेवया।यत्र चैवात्मनाऽऽत्मानं पश्यन्नात्मनि तुष्यति।।6.20।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।6.20।।योगका सेवन करनेसे जिस अवस्थामें निरुद्ध चित्त उपराम हो जाता है तथा जिस अवस्थामें स्वयं अपनेआपमें अपनेआपको देखता हुआ अपनेआपमें सन्तुष्ट हो जाता है।
।।6.20।। No commentary.
English Translation By Swami Sivananda
6.20 When the mind, restrained by the practice of Yoga attains to ietude and when seeing the Self by the self, he is satisfied in hiw own Self.