Verse: 5,27
मूल श्लोक :
स्पर्शान्कृत्वा बहिर्बाह्यांश्चक्षुश्चैवान्तरे भ्रुवोः।प्राणापानौ समौ कृत्वा नासाभ्यन्तरचारिणौ।।5.27।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।5.27 5.28।।बाह्य पदार्थोंको बाहर ही छोड़कर और नेत्रोंकी दृष्टिको भौंहोंके बीचमें स्थित करके तथा नासिकामें विचरनेवाले प्राण और अपान वायुको सम करके जिसकी इन्द्रियाँ मन और बुद्धि अपने वशमें हैं जो मोक्षपरायण है तथा जो इच्छा भय और क्रोधसे सर्वथा रहित है वह मुनि सदा मुक्त ही है।
।।5.27।। No commentary.
English Translation By Swami Sivananda
5.27 Shutting out (all) external contacts and fixing the gaze between the ey