Verse: 5,17
मूल श्लोक :
तद्बुद्धयस्तदात्मानस्तन्निष्ठास्तत्परायणाः।गच्छन्त्यपुनरावृत्तिं ज्ञाननिर्धूतकल्मषाः।।5.17।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।5.17।।जिनकी बुद्धि तदाकार हो रही है जिनका मन तदाकार हो रहा है जिनकी स्थिति परमात्मतत्वमें है ऐसे परमात्मपरायण साधक ज्ञानके द्वारा पापरहित होकर अपुनरावृत्ति (परमगति) को प्राप्त होते हैं।
।।5.17।। शास्त्रों के गहन अध्ययन के द्वारा साधक अपने व्यक्तित्व के सभी पक्षों के साथ आत्मयुक्त हो जाता है। बुद्धि आत्मस्वरूप का निश्चय करके उसमें ही स्थित हो जाती है और उसके मन की प्रत्येक भावना ईश्वर की ही स्तुति का गान करती है। अनन्त आनन्दस्वरूप को आत्मरूप से पहचान कर साधक की उसमें निष्ठा हो जाती है। ऐसे व्यक्ति के लिए अपरिच्छिन्न और अपरिच्छेद्य आत्मा के अतिरिक्त अन्य कोई परम लक्ष्य नहीं हो सकता।शास्त्राध्ययन के द्वारा जो व्यक्ति अपने सत्यात्मस्वरूप का ज्ञान प्राप्त कर लेता है उसके लिए पुन राग या द्वेष के बन्धन में आने का अवसर या कारण ही नहीं रह जाता। यही शास्त्राध्ययन का फल है। अध्ययन के पश्चात् आवश्यकता होती है उस ज्ञान के अनुसार जीवन जीने की अर्थात् उस ज्ञान के आचरण की। अध्ययन और आचरण से ही स्वस्वरूप में अवस्थान सम्भव हो सकता है।स्वरूप में अवस्थान प्राप्त पुरुष का पुनर्जन्म नहीं होता। इसका कारण क्या है हम कैसेे कह सकते हैं कि ज्ञान के उपरान्त पुन अहंकार उत्पन्न नहीं होगा ज्ञानी पुरुषों के लिए प्रयुक्त ज्ञाननिर्धूतकल्मषा इस विशेषण के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण उपर्युक्त प्रश्न का उत्तर देते हैं। कल्मष अर्थात् पाप से तात्पर्य वासनाओं से है। वासनाओं से उत्पन्न होता है अहंकार। वेदान्त में वासना को ही आत्मअज्ञान कहते हैं। अज्ञान के विरोधी आत्मज्ञान का उदय होने पर दुखदायक अज्ञान अंधकार का विनाश हो जाता है और उसके साथ ही तज्जनित अहंकार भी नष्ट हो जाता है। तत्पश्चात् अहंकार पुन जन्म नहीं ले सकता क्योंकि ज्ञान की उपस्थिति में अज्ञान लौटकर नहीं आ सकता। कारण के ही अभाव में कार्यरूप अहंकार कैसे उत्पन्न हो सकता है इस श्लोक में हमें विश्व के सबसे आशावादी तत्त्वज्ञान के दर्शन होते हैं जहाँ स्पष्ट घोषणा की गई है कि आत्मसाक्षात्कार जीव के विकास का चरम लक्ष्य है। परम तत्त्व की अनुभूति विकास के सोपान की अन्तिम सीढ़ी है जिसे प्राप्त करने के लिए ही जीव स्वनिर्मित विषयों के बन्धनों में यत्रतत्र भटकता रहता है।ज्ञान के द्वारा जिनका अज्ञान नष्ट हो जाता है वे ज्ञानी पुरुष किस प्रकार तत्त्व को देखते हैं उत्तर है
English Translation By Swami Sivananda
5.17 Their intellect absorbed in That, their self being That, established in That, with That for their supreme goal, they go whence there is no return, their sins dispelled by knowledge.