Verse: 4,9
मूल श्लोक :
जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः।त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन।।4.9।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।4.9।।हे अर्जुन मेरे जन्म और कर्म दिव्य हैं। इस प्रकार (मेरे जन्म और कर्मको) जो मनुष्य तत्त्वसे जान लेता अर्थात् दृढ़तापूर्वक मान लेता है वह शरीरका त्याग करके पुनर्जन्मको प्राप्त नहीं होता प्रत्युत मुझे प्राप्त होता है।
।।4.9।। अवतार कैसे होता है तथा उसका प्रयोजन भी बताने के पश्चात् श्रीकृष्ण यहाँ कहते हैं कि जो पुरुष उनके दिव्य जन्म और कर्म को तत्त्वत जानता है वह सब बन्धनों से मुक्त होकर परमात्मस्वरूप बन जाता है। तत्त्वत शब्द से यह स्पष्ट किया गया है कि इसे केवल बुद्धि के स्तर पर जानना नहीं है वरन् यह अनुभव करना है कि अपने ही हृदय में किस प्रकार परमात्मा का अवतरण होता है। आज निसन्देह ही हम एक पशु के समान जी रहे हैं परन्तु जब कभी हम निस्वार्थ इच्छा से प्रेरित हुए कर्म करते हैं उस समय परमात्मा की ही दिव्य क्षमता हमारे कर्मों में झलकती है।इस श्लोक में सूक्ष्म संकेत यह भी है कि आत्मविकास के लिये भगवान् के आनन्दरूप की उपासना करना निराकार आत्मा के ध्यान के समान ही प्रभावकारी है। कुछ वेदान्त विचारक ऐसे भी हैं जो भगवान् के सगुणसाकार होने की कल्पना को स्वीकार नहीं करते। अत वे अवतार को भी नहीं मानते। वास्तव में यह युक्तियुक्त नहीं है। पूरी लगन से जो पुरुष साधना करता है वह सगुण अथवा निर्गुण उपासना के द्वारा लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है।यहाँ उस पूर्णत्व की स्थिति का संकेत किया गया है जिसे प्राप्त करके जीव का पुनर्जन्म नहीं होता। वैदिक साहित्य में अनेक स्थानों पर इसका संकेत अमृतत्त्व शब्द से किया गया है तो दूसरे स्थानों पर पुनर्जन्म के अभाव के रूप में। ऐसा प्रतीत होता है मानो पहले लोग मृत्यु से डरते थे इसलिये पूर्णत्व की स्थिति मे उसका अभाव बताया गया है। अन्य विचारकों ने यह अनुभव किया होगा कि मृत्यु से अधिक दुखदायी जन्म है क्योकि उसके पश्चात् दुखों की एक शृंखला प्रारम्भ हो जाती है। अत मोक्ष का लक्षण पुनर्जन्म का अभाव कहा गया है।जिनका जन्म होता हैउसी का नाश भी होता है इस कारण अमृतत्त्व और पुनर्जन्म के अभाव से पूर्णत्व की स्थिति का ही संकेत किया गया है। तथापि दूसरे शब्द से विचारकों की परिपक्वता स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है।यह मोक्षमार्ग केवल वर्तमान में ही प्रवृत्त नहीं हुआ बल्कि प्राचीनकाल में भी अनेक साधकों ने इसका अनुसरण किया था राग भय और क्रोध से रहित मन्मय (मेरे में स्थिति वाले) मेरे शरण हुए बहुत से पुरुष ज्ञानरूप तप से पवित्र हुए मेरे स्वरूप को प्राप्त
English Translation By Swami Sivananda
4.9 He who thus know, in their true light, My divine birth and action, having abandoned the body, is not born again, he comes to Me, O Arjuna.