Verse: 4,5
मूल श्लोक :
श्री भगवानुवाचबहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन।तान्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वेत्थ परन्तप।।4.5।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।4.5।।श्रीभगवान् बोले हे परन्तप अर्जुन मेरे और तेरे बहुतसे जन्म हो चुके हैं। उन सबको मैं जानता हूँ पर तू नहीं जानता।
।।4.5।। हिन्दू शास्त्रों के आचार्य सदैव शिष्यों के मन में उठने वाली सभी संभाव्य शंकाओं का निरसन करने को तत्पर रहते हैं। हम उनमें असीम घैर्य और शिष्यों की कठिनाइयों को समझने की क्षमता के साक्षात् दर्शन कर सकते हैं। यहाँ श्रीकृष्ण अर्जुन को यह समझाने का प्रयत्न करते हैं कि किस प्रकार वे अनन्त स्वरूप हैं और सृष्टि के प्रारम्भ में कैसे उन्होंने सूर्य देवता को ब्रह्मविद्या का उपदेश दिया।पुराणों में वर्णित अवतार का सिद्धान्त इस प्रकरण में विस्तारपूर्वक बताया गया है। अनेक विदेशियों को हिन्दू दर्शन का यह प्रकरण और हिन्दुओं का अवतारवाद में विश्वास अत्यन्त भ्रामक प्रतीत हो सकता है। अनेक विद्वानों ने इस प्रकार के मत प्रगट भी किये हैं परन्तु मैक्समूलर के समान संभवत किसी ने इतनी तीब्र आलोचना नहीं की होगी। अवतार के विषय में वे कहते हैं यह आध्यात्मिक बकवास है।परन्तु यदि हम सृष्टिसम्बन्धी वेदान्त के सिद्धान्त को जानते हुये इस पर विचार करें तो अवतारवाद को समझना कठिन नहीं होगा। एक अन्य स्थान पर मनुष्य के पतन के प्रकरण में यह विस्तार पूर्वक बताया गया है कि सत्वगुणप्रधान उपाधि के माध्यम से व्यक्त होकर अनन्तस्वरूप परमार्थ सत्य ब्रह्म सर्वशक्तिमान् ईश्वर के रूप में प्रकट होता है। इसी अध्याय में आगे श्रीकृष्ण बतायेंगे कि किस प्रकार वे स्वेच्छा और पूर्ण स्वातन्त्र्य से उपाधियों को धारण करके मनुष्यों के मध्य रहते हुए कार्य करते हैं जो उनकी दृष्टि से लीलामात्र है। उन्हें कभी भी अपने दिव्य स्वरूप का विस्मरण नहीं होता।किसी एक भी प्राणी का जन्म केवल संयोग ही नहीं है। डार्विन के विकास के सिद्धान्त के अनुसार भी प्रत्येक व्यक्ति जगत में विकास की सीढी पर उन्नति करने के फलस्वरूप आया है। प्रत्येक देहधारी का जीवन उस जीव के दीर्घ आत्मचरित्र को दर्शाता है। असंख्य और विभिन्न प्रकार के शरीरों में वास करने के पश्चात् ही जीव वर्तमान विकसित स्थिति को प्राप्त करता हुआ है। प्रत्येक नवीन देह में जीव को पूर्व जन्मों का विस्मरण हो जाता है किन्तु वह पूर्व जन्मों में अर्जित वासनाओं से युक्त रहता है। परन्तु भगवान् श्रीकृष्ण की स्थिति एक जीव के समान नहीं समझनी चाहिये। वे अपनी सर्वज्ञता के कारण अर्जुन के और स्वयं के अतीत को जानते हैं अत उन्होंन्ो कहा मैं उन सबको जानता हूँ और तुम नहीं जानते।आपके लिये धर्मअधर्म के अभाव में जन्म की क्या आवश्यकता है आपका जन्म कैसे सम्भव है इसका उत्तर है
English Translation By Swami Sivananda
4.5 The Blessed Lord said Many births of Mine have passed as well as of thine, O Arjuna; I know them all but thou knowest not, O Parantapa (scorcher of foes).