Verse: 4,37
मूल श्लोक :
यथैधांसि समिद्धोऽग्निर्भस्मसात्कुरुतेऽर्जुन।ज्ञानाग्निः सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरुते तथा।।4.37।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।4.37।।हे अर्जुन जैसे प्रज्वलित अग्नि ईंधनोंको सर्वथा भस्म कर देती है ऐसे ही ज्ञानरूपी अग्नि सम्पूर्ण कर्मोंको सर्वथा भस्म कर देती है।
।।4.37।। यह दृष्टान्त सुपरिचित तथा अत्यन्त उपयुक्त है। ईन्धन की लकड़ियों का आकारप्रकार या रंग कुछ भी हो जब उन्हें अग्निकुण्ड में डाला जाता है तब सब का अन्तिम परिणाम एक ही होता है भस्म। उस भस्म के ढेर से हम विभिन्न लकड़ियों की राख को अलगअलग नहीं कर सकते। उनका मूलरूप सर्वथा नष्ट हो जाता है। इसी प्रकार पाप और पुण्य जो भी और जितने भी कर्म हैं वे सब ज्ञानाग्नि में भस्मीभूत हो जाते है। उनका पूर्व का कार्यकारण रूप नष्ट हो जाता है।कर्म फल प्रदान करते हैं। परन्तु सभी कर्म एक साथ ही फलदायी नहीं हो सकते। नियमानुसार जब वे परिपक्व हो जाते हैं तभी उनका फल प्राप्त होने लगता हैं। अनादि काल से जीव कर्तृत्व का अभिमान करके अनेक कर्मों को करता आ रहा है। इसीलिये उसे अनेक प्रकार के शरीर भी धारण करने पड़ते हैं। इन कर्मों का फलोपभोग आवश्यक होता है।शास्त्रों में इन कर्मों का वर्गीकरण तीन भागों में किया गया है (क) संचितअर्जित किये कर्म जो अभी फलदायी नहीं हुए हैं (ख) प्रारब्ध जिन्होंने फल देना प्रारम्भ कर दिया है तथा (ग) आगामी अर्थात् जिन कर्मों का फल भविष्य में मिलेगा। इस श्लोक में सब कर्मों से तात्पर्य संचित और आगामी कर्मों से है।इसलिये
English Translation By Swami Sivananda
4.37 As the blazing fire reduces fuel to ashes, O Arjuna, so does the fire of knowledge reduce all actions to ashes.