Verse: 3,33
मूल श्लोक :
सदृशं चेष्टते स्वस्याः प्रकृतेर्ज्ञानवानपि।प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रहः किं करिष्यति।।3.33।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।3.33।।सम्पूर्ण प्राणी प्रकृतिको प्राप्त होते हैं। ज्ञानी महापुरुष भी अपनी प्रकृतिके अनुसार चेष्टा करता है। फिर इसमें किसीका हठ क्या करेगा
।।3.33।। जिस प्रकार के विचारों का चिन्तन हम करते हैं उनसे विचारों की दिशा निर्धारित होती है और वे स्थायी भाव का रूप लेते हैं इसको ही हमारा स्वभाव कहा जाता है। किसी समय मनुष्य का स्वभाव उसके मन में उठने वाले विचारों से निश्चित किया जाता है। यहाँ कहा गया है कि ज्ञानवान् पुरुष भी अपने स्वभाव के अनुसार ही कार्य करता है।यहाँ ज्ञानवान शब्द का अर्थ है वह पुरुष जिसने कर्मयोग के सिद्धान्त को भली भाँति समझ लिया है। यद्यपि वह सिद्धान्त को जानता है तथापि उसे कार्यान्वित करने में कठिनाई आती है क्योंकि उसका स्वभाव उसके कार्य में बाधा उत्पन्न करता है। पूर्वाजिर्त वासनाओं के कारण इस सरल से प्रतीत होने वाले सिद्धांत को मनुष्य अपने जीवन में नहीं उतार पाता। इसका एक मात्र कारण है प्राणिमात्र अपने स्वभाव का अनुसरण करते हैं। स्वभाव के शक्तिशाली होने पर किसी का निग्रह क्या करेगा यह अन्तिम वाक्य भगवान् के उपदेश में निराशा का उद्गार नहीं किन्तु उनकी परिपूर्ण दृष्टि का परिचायक है। वे वस्तु स्थिति से परिचित हैं कि प्रत्येक व्यक्ति जीवन के उच्च मार्ग पर चलने की क्षमता नहीं रखता। विकास के सोपान की सबसे निचली सीढ़ी पर खड़े असंख्य मनुष्यों के लिये इस मार्ग का अनुसरण कदापि सम्भव नहीं क्योंकि विषयों में आसक्ति तथा पाशविक प्रवृत्तियों से वे इस प्रकार बंधे होते हैं कि उन सबका एकाएक त्याग करना उन सबके लिये सम्भव नहीं होता। जिस मनुष्य में कर्म के प्रति उत्साह तथा जीवन में कुछ पाने की महत्त्वाकांक्षा है केवल वही व्यक्ति इस कर्मयोग का आचरण करके स्वयं को कृतार्थ कर सकता है। भगवान् का यह कथन उनकी विशाल हृदयता एवं सहिष्णुता का परिचायक है।प्रत्येक व्यक्ति का अपना निजी स्वभाव है यदि उसी के अनुसार कर्म करने को वह विवश है तो फिर पुरुषार्थ के लिये कोई अवसर ही नहीं रह जाता। इस कारण यह उपदेश भी निष्प्रयोजन हो जाता है। इस पर भगवान् कहते हैं
English Translation By Swami Sivananda
3.33 Even a wise man acts in accordance with his own nature; beings will follow Nature; what can
restraint do?