Verse: 3,32
मूल श्लोक :
ये त्वेतदभ्यसूयन्तो नानुतिष्ठन्ति मे मतम्।सर्वज्ञानविमूढांस्तान्विद्धि नष्टानचेतसः।।3.32।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।3.32।।परन्तु जो मनुष्य मेरे इस मतमें दोषदृष्टि करते हुए इसका अनुष्ठान नहीं करते उन सम्पूर्ण ज्ञानोंमें मोहित और अविवेकी मनुष्योंको नष्ट हुए ही समझो।
।।3.32।। भगवान् के उपदेश में दोष देखकर उसका पालन न करने से मनुष्य और भी अधिक मोहित हुआ अपनी ही हानि कर लेगा।जीवन के मार्ग को भली प्रकार समझ लेने पर ही मनुष्य को कर्ममय जीवन जीने के लिये उत्साहित किया जा सकता है। यदि मनुष्य पहले से किसी सिद्धांत की ही निन्दा में प्रवृत्त हो जाता है तो उस सिद्धांत के अनुरूप जीवन यापन की कोई सम्भावना ही नहीं रह जाती। कर्मयोग जीवन यापन का एक मार्ग है और उसके कल्याणकारी फल को प्राप्त करने के लिये हमें तदनुसार ही जीवन जीना होगा।अहंकार और स्वार्थ को त्यागकर कर्म करना ही आदर्श जीवन है जिसके द्वारा मनुष्य को नित्य और महान् उपलब्धियां प्राप्त हो सकती हैं। ऐसे जीवन का त्याग करने का अर्थ है अविवेक को निमन्त्रण देना और अन्त में स्वयं का नाश कराना।बुद्धि के कारण ही मनुष्य को प्राणि जगत् में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। बुद्धि में स्थित आत्मानात्मविवेक सत्य और मिथ्या का विवेक करने की क्षमता का सदुपयोग ही आत्मविकास का एकमात्र उपाय है। विवेक के नष्ट होने पर वह पशु के समान मन की प्रवृत्तियों के अनुसार व्यवहार करने लगता है तथा मनुष्य जीवन के परम पुरुषार्थ को प्राप्त नहीं कर पाता। यही उसका विनाश है।क्या कारण है कि लोग इस उपदेशानुसार कर्तव्य पालन नहीं करते भगवान् के उपदेश का उल्लंघन करने में उन्हें भय क्यों नहीं लगता इसका उत्तर है
English Translation By Swami Sivananda
3.32 But those who carp at My teaching and do not practise it, deluded of all knowledge, and devoid of discrimination, know them to be doomed to destruction.