Verse: 3,18
मूल श्लोक :
नैव तस्य कृतेनार्थो नाकृतेनेह कश्चन।न चास्य सर्वभूतेषु कश्िचदर्थव्यपाश्रयः।।3.18।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।3.18।।उस (कर्मयोगसे सिद्ध हुए) महापुरुषका इस संसारमें न तो कर्म करनेसे कोई प्रयोजन रहता है और न कर्म न करनेसे ही कोई प्रयोजन रहता है तथा सम्पूर्ण प्राणियोंमें (किसी भी प्राणीके साथ) इसका किञ्चिन्मात्र भी स्वार्थका सम्बन्ध नहीं रहता।
।।3.18।। सामान्य मनुष्य कर्म में दो कारणों से प्रवृत्त होता है (क) कर्म करने से (कृत) कुछ लाभ की आशा और (ख) कर्म न करने से (अकृत) किसी हानि का भय। परन्तु जिसने अपने परम पूर्ण आत्मस्वरूप को साक्षात् कर लिया ऐसे तृप्त और सन्तुष्ट पुरुष को कर्म करने अथवा न करने से कोई प्रयोजन नहीं रह जाता क्योंकि उसे न अधिक लाभ की आशा होती है और न हानि का भय। आत्मानुभूति में स्थित वह पुरुष आनन्द के लिये किसी भी वस्तु या व्यक्ति पर आश्रित नहीं होता। परमार्थ दृष्टि से बाह्य विषय रूप जगत् आत्मस्वरूप से भिन्न नहीं है। वास्तव में आत्मा ही अविद्या वृत्ति से जगत् के रूप में प्रतीत होता है।चूँकि तुमने समुद्र के समान पूर्णत्व प्राप्त नहीं किया है इसलिए
English Translation By Swami Sivananda
3.18 For him there is no interest whatever in what is done or what is not done; nor does he depend on any being for any object.