Verse: 3,12
मूल श्लोक :
इष्टान्भोगान्हि वो देवा दास्यन्ते यज्ञभाविताः।तैर्दत्तानप्रदायैभ्यो यो भुङ्क्ते स्तेन एव सः।।3.12।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।3.12।।यज्ञसे भावित (पुष्ट) हुए देवता भी तुमलोगोंको (बिना माँगे ही) कर्तव्यपालनकी आवश्यक सामग्री देते रहेंगे। इस प्रकार उन देवताओंसे प्राप्त हुई सामग्रीको दूसरोंकी सेवामें लगाये बिना जो मनुष्य स्वयं ही उसका उपभोग करता है वह चोर ही है।
।।3.12।। देवताओं को सन्तुष्ट करने पर वे हमें सन्तुष्ट करते हैं कर्मकाण्ड के इस अबाध्य सिद्धान्त को श्रीकृष्ण दोहराते हैं। देव और यज्ञ इन दो शब्दों के पारम्परिक अर्थ के स्थान पर पूर्वश्लोकों के विवरण में बताये हुये अर्थ को हम यदि स्वीकार करें तभी इस श्लोक का अर्थ सत्य प्रमाणित होता है उत्पादनक्षमता (देव) का त्याग और अर्पण की भावना से आचरित कर्म (यज्ञ) के द्वारा पोषण करने पर वह हमें इष्ट फल प्रदान करेगा। यह जीवन का नियम है।जब हम सबको यज्ञ से फल प्राप्त होता है तब उसे आपस में बांटकर उपभोग करने का हमें पूर्ण अधिकार है। किसी भी प्राणी को सामूहिक प्रयत्न में सहयोग दिये बिना दूसरे के कर्मों का लाभ नहीं उठाना चाहिये। पूँजीवादी जीवन व्यवस्था में एक यह दुष्प्रवृत्ति दिखाई देती है कि लाखों कर्मचारियों के सामूहिक कर्मों का अधिक से अधिक लाभ अकेला व्यक्ति उठाना चाहता है। इस प्रकार की दुष्प्रवृत्ति अन्तत सभी कर्मक्षेत्रों में अव्यवस्था को जन्म देती है। परिणाम यह होता है कि जीवन के सामंजस्य में अव्यवस्था फैलाने से राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति के लिये संकट उत्पन्न हो जाता है। इस श्लोक के दूसरी पंक्ति में कही हुई बात को आधुनिक अर्थशास्त्र की भाषा में इस प्रकार कहते हैं समाज का वह व्यक्ति जो उत्पादन किये बिना भोग करता है राष्ट्र के लिये भारस्वरूप है।यज्ञ (निस्वार्थ सेवा) किये बिना जो देवताओं से भोग प्राप्त करता है भगवान् श्रीकृष्ण उसे सामाजिक चोर की संज्ञा देते हैं। गीताकालीन सम्मानित नैतिक आदर्शों को देखते हुये चोर शब्द का प्रयोग कठोर किन्तु शक्तिशाली है जो भोगी एवं सामाजिक अपराधी व्यक्ति के भ्रष्ट एवं अनादर पूर्ण स्वभाव की ओर संकेत करता है।परन्तु
English Translation By Swami Sivananda
3.12 The gods, nourished by the sacrifice, will give you the desired objects. So, he who enjoys the objects given by the gods without offering (in return) to them, is verily a thief.