Verse: 2,9
मूल श्लोक :
सञ्जय उवाचएवमुक्त्वा हृषीकेशं गुडाकेशः परन्तप।न योत्स्य इति गोविन्दमुक्त्वा तूष्णीं बभूव ह।।2.9।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।2.9।।सञ्जय बोले हे शत्रुतापन धृतराष्ट्र ऐसा कहकर निद्राको जीतनेवाले अर्जुन अन्तर्यामी भगवान् गोविन्दसे मैं युद्ध नहीं करूँगा ऐसा स्पष्ट कहकर चुप हो गये।
।।2.9।। संजय आगे वर्णन करते हुये कहता है कि भगवान् की शरण में जाकर गुडाकेशनिद्राजित एवं शत्रु प्रपीड़क अर्जुन ने यह कहा कि वह युद्ध नहीं करेगा और फिर वह मौन हो गया।केवल एक अंध धृतराष्ट्र को छोड़कर किसी भी व्यक्ति को यह अधिकार या सार्मथ्य नहीं थी कि वह युद्ध को इन क्षणों में भी रोक सके। अवश्यंभावी और अपरिहार्य युद्ध को धृतराष्ट्र द्वारा रोकने की क्षीण आशा संजय के हृदय में थी। शत्रुपीड़क अर्जुन अब तीनों जगत् को जीतने वाले (गोविन्द) भगवान् श्रीकृष्ण की शरण में पहुँच गया था इसलिये उसकी विजय अब निश्चित थी परन्तु जन्मान्ध धृतराष्ट्र ने किसी की भी श्रेष्ठ सलाह को अत्यधिक पुत्र प्रेम के कारण नहीं सुना।
English Translation By Swami Sivananda
2.9 Sanjaya said Having spoken thus to Hrishikesha (the Lord of the senses), Arjuna (the coneror of sleep), the destroyer of foes, said to Krishna, "I will not fight" and became silent.