Verse: 2,69
मूल श्लोक :
या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी।यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः।।2.69।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।2.69।।सम्पूर्ण मनुष्योंकी जो रात (परमात्मासे विमुखता) है उसमें संयमी मनुष्य जागता है और जिसमें साधारण मनुष्य जागते हैं (भोग और संग्रहमें लगे रहते हैं) वह तत्त्वको जाननेवाले मुनिकी दृष्टिमें रात है।
।।2.69।। ज्ञानी और अज्ञानी की दृष्टियों के बीच के भेद को स्पष्ट करना इस श्लोक का प्रयोजन है। शरीर और मन की उपाधियों के माध्यम से अनुभूत जगत् अध्यात्म के खुले वातायन से देखे गये हृदय से भिन्न होता है। यहाँ रूपक की भाषा में सिद्धांत को इतने पूर्ण रूप से कहा गया है कि अनेक शुष्क तर्क करने वाले लोग उसमें निहित काव्य के सौन्दर्य को देख नहीं पाते। काव्य और ज्ञान का समन्वय करना आर्य लोगों की विशेषता है और जब दार्शनिक कवि व्यास जी पूर्णत्व के आनन्द को व्यक्त करने के लिये अपनी लेखनी और भोजपत्र उठाते थे तब वे गीता में कविता से श्रेष्ठ अन्य कोई माध्यम प्रयुक्त नहीं कर सकते थे।अज्ञानी पुरुष जगत् को यथार्थ रूप में कभी नहीं देखता वह जगत् को अपने मन के रंग में रंगकर देखता है और फिर बाह्य वस्तुओं को ही दोषयुक्त समझता है। रंगीन चश्मे द्वारा जगत् को देखने पर वह रंगीन ही दिखाई देगा किन्तु जब कांच को हटा देते हैं तब वह जगत् जैसा है वैसा ही प्रतीत होता है।आज जब हम शरीर मन और बुद्धि के माध्यम से जगत् को देखते हैं तब वह स्वाभाविक ही परिच्छिन्न और दोषयुक्त अनुभव होता है किन्तु यह सब दोष उपाधियों का ही है। स्थितप्रज्ञ पुरुष अपनी ज्ञान की दृष्टि से जब देखता है तब उसे पूर्णत्व और आनन्द का ही अनुभव होता है।जब एक विद्युत अभियन्ता (इंजीनियर) किसी महानगर में पहुँचता है जहाँ संध्या के समय से ही सभी दिशाओं में विद्युत का प्रकाश जगमगाता है तब वह प्रश्न करता है कि यह ए.सी. है या डी. सी. जबकि उसी दृश्य को एक अनपढ़ ग्रामीण व्यक्ति आश्चर्य चकित होकर देखते हुए चिल्ला उठता है कि बिना तेल और बत्ती के प्रकाश को मैं देख रहा हूँ उस ग्रामीण की दृष्टि से वहां न विद्युत है और न ए. सी. डी. सी. की समस्या उस अभियन्ता की दृष्टि ग्रामीण को अज्ञात है और वह अभियन्ता भी उस ग्रामीण के आश्चर्य को समझ नहीं पाता।इस श्लोक में यह बताया गया है कि अज्ञानी र्मत्य जीव आत्मस्वरूप के प्रति सोया हुआ है जिसके प्रति ज्ञानी पुरुष पूर्णरूप से जागरूक है। जिन सांसारिक विषयों के प्रति अज्ञानी लोग सजग होकर व्यवहार करते हैं और दुख भोगते हैं स्थितप्रज्ञ पुरुष उसे रात्रि अर्थात् अज्ञान की अवस्था ही समझते हैं।जिसने समस्त कामनाओं का त्याग किया वही ज्ञानी भक्त मोक्ष प्राप्त करता है और कामी पुरुष कभी नहीं। इसे एक दृष्टान्त द्वारा भगवान् समझाते हैं
English Translation By Swami Sivananda
2.69 That which is night to all beings, in that the self-controlled man is awake; when all beings are awake, that is night for the Muni (sage) who sees.