Verse: 2,54
मूल श्लोक :
अर्जुन उवाचस्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव।स्थितधीः किं प्रभाषेत किमासीत व्रजेत किम्।।2.54।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।2.54।।अर्जुन बोले हे केशव परमात्मामें स्थित स्थिर बुद्धिवाले मनुष्यके क्या लक्षण होते हैं वह स्थिर बुद्धिवाला मनुष्य कैसे बोलता है कैसे बैठता है और कैसे चलता है
।।2.54।। इसके पूर्व के दो श्लोकों में कर्मयोग पर विचार करते हुये सहज रूप से कर्म योगी के परम लक्ष्य की ओर भगवान् ने संकेत किया है। यह सिद्धान्त बुद्धि ग्राह्य एवं युक्तियुक्त था। भगवान् श्रीकृष्ण के मुख से सुनने पर उसके प्रामाण्य के विषय में भी कोई संदेह नहीं रह जाता। अर्जुन का स्वभाव ही ऐसा था कि उसे कर्मयोग ही ग्राह्य हो सकता था।प्रथम अध्याय का शोकाकुल अर्जुन अपने शोक को भूलकर संवाद में रुचि लेने लगा। कर्मशील स्वभाव के कारण उसे शंका थी कि बुद्धियोग के द्वारा जीवन के लक्ष्य को प्राप्त कर लेने पर इस जगत् में कर्ममय जीवन संभव होगा अथवा नहीं।समाधि आदि शब्दों के प्रचलित अर्थ से तो कोई यही समझेगा कि योगी पुरुष आत्मानुभूति में अपने ही एकान्त में रमा रहता है। प्रचलित वर्णनों के अनुसार नये जिज्ञासु साधक की कल्पना होती है कि ज्ञानी पुरुष इस व्यावहारिक जगत् के योग्य नहीं रह जाता। ऐसी धारणाओं वाले घृणा और कूटिनीति के युग में पला अर्जुन इस ज्ञान को स्वीकार करने के पूर्व ज्ञानी पुरुष के लक्षणों को जानना चाहता था।स्थितप्रज्ञ के लक्षणों को पूर्णत समझने की उसकी अत्यन्त उत्सुकता स्पष्ट झलकती है जब वह कुछ अनावश्यक सा यह प्रश्न पूछता है कि वह पुरुष कैसे बोलता है कैसे बैठता है आदि। उन्माद की अवस्था से बाहर आये अर्जुन का ऐसा प्रश्न उचित ही है। श्लोक की पहली पंक्ति में स्थितप्रज्ञ के आन्तरिक स्वभाव के विषय में प्रश्न है तो दूसरी पंक्ति में वाह्य जगत् में उसके व्यवहार को जानने की जिज्ञासा है।इस प्रकरण में स्थितप्रज्ञ का अर्थ है वह पुरुष जिसे आत्मा का अपरोक्ष अनुभव हुआ हो।अब भगवान् ज्ञानी पुरुष के उन लक्षणों का वर्णन करते हैं जो उसके लिये स्वाभाविक हैं और एक साधक के लिये साधन रूप हैं
English Translation By Swami Sivananda
2.54 Arjuna said What, O Krishna, is the description of him who has steady wisdom, and is merged in the superconscious state? How does one of steady wisdom speak, how does he sit, how does he walk?