Verse: 2,31
मूल श्लोक :
स्वधर्ममपि चावेक्ष्य न विकम्पितुमर्हसि।धर्म्याद्धि युद्धाछ्रेयोऽन्यत्क्षत्रियस्य न विद्यते।।2.31।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।2.31।।अपने धर्मको देखकर भी तुम्हें विकम्पित अर्थात् कर्तव्यकर्मसे विचलित नहीं होना चाहिये क्योंकि धर्ममय युद्धसे बढ़कर क्षत्रियके लिये दूसरा कोई कल्याणकारक कर्म नहीं है।
।।2.31।। क्षत्रिय का कार्य समाज का राष्ट्र का नेतृत्व करना है और क्षत्रिय होने के नाते अर्जुन का कर्तव्य हो जाता है कि समाज पर आये अधर्म के संकट से उसकी रक्षा करे। उसका कर्तव्य है कि समाज के आह्वान पर युद्ध भूमि में विचलित न होकर शत्रुओं से युद्ध करके राष्ट्र की संस्कृति का रक्षण करे।क्षत्रियों के लिए इससे बढ़कर कोई और श्रेयष्कर कार्य नहीं हो सकता कि उनको धर्मयुक्त युद्ध में अपना शौर्य दिखाने का स्वर्ण अवसर मिले। यहाँ अधर्मियों ने ही पहले आक्रमण किया है। अत अर्जुन का युद्ध से विरत होना उचित नहीं। महाभारत के उद्योग पर्व में स्पष्ट कहा है निरपराध व्यक्ति की हत्या का पाप उतना ही बड़ा है जितना कि नाश करने योग्य व्यक्ति का नाश न करने का है।युद्ध का औचित्य सिद्ध करते हुए भगवान् अन्य कारण बताते हैं
English Translation By Swami Sivananda
2.31 Further, having regard to thy duty, shouldst not waver, for there is nothing higher for a Kshatriya than a righteous war.