Verse: 2,20
मूल श्लोक :
न जायते म्रियते वा कदाचि न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे।।2.20।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।2.20।।यह शरीरी न कभी जन्मता है और न मरता है। यह उत्पन्न होकर फिर होनेवाला नहीं है। यह जन्मरहित नित्यनिरन्तर रहनेवाला शाश्वत और पुराण (अनादि) है। शरीरके मारे जानेपर भी यह नहीं मारा जाता।
।।2.20।। इस श्लोक में बताया गया है कि शरीर में होने वाले समस्त विकारों से आत्मा परे है। जन्म अस्तित्व वृद्धि विकार क्षय और नाश ये छ प्रकार के परिर्वतन शरीर में होते हैं जिनके कारण जीव को कष्ट भोगना पड़ता है। एक र्मत्य शरीर के लिये इन समस्त दुख के कारणों का आत्मा के लिये निषेध किया गया है अर्थात् आत्मा इन विकारों से सर्वथा मुक्त है।शरीर के समान आत्मा का जन्म नहीं होता क्योंकि वह तो सर्वदा ही विद्यमान है। तरंगों की उत्पत्ति होती है और उनका नाश होता है परन्तु उनके साथ न तो समुद्र की उत्पत्ति होती है और न ही नाश। जिसका आदि है उसी का अन्त भी होता है। उत्ताल तरंगे ही मृत्यु की अन्तिम श्वांस लेती हैं। सर्वदा विद्यमान आत्मा के जन्म और नाश का प्रश्न ही नहीं उठता। अत यहाँ कहा है कि आत्मा अज और नित्य है।आत्मा में क्रिया के कर्तृत्व और विषयत्व का निषेध तथा उसके बाद तर्क के द्वारा उसके अविकारत्व को सिद्ध करने के बाद भगवान् इस विषय का उपसंहार करते हुये कहते हैं
English Translation By Swami Sivananda
2.20 It is not born, nor does It ever die; after having been, It again ceases not to be; unborn, eternal, changeless and ancient, It is not killed when the body is killed.