Verse: 18,70
मूल श्लोक :
अध्येष्यते च य इमं धर्म्यं संवादमावयोः।ज्ञानयज्ञेन तेनाहमिष्टः स्यामिति मे मतिः।।18.70।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।18.70।।जो मनुष्य हम दोनोंके इस धर्ममय संवादका अध्ययन करेगा? उसके द्वारा भी मैं ज्ञानयज्ञसे पूजित होऊँगा -- ऐसा मेरा मत है।
।।18.70।। गीता के समस्त उपदेष्टाओं को गौरवान्वित करने के पश्चात्? अब भगवान् श्रीकृष्ण उन विद्यार्थियों की भी प्रशंसा करते हैं? जो इस पवित्र भगवद्गीता का पठन करते हैं। अनन्तस्वरूप भगवान् श्रीकृष्ण और परिच्छिन्न जीवरूप अर्जुन के इस संवादरूप जीवन के तत्त्वज्ञान का अपना एक प्रबल आकर्षण है। जो लोग केवल इसका सतही पठन करते हैं? वे भी शनैशनै इसकी पावन गहराइयों में खिंचे चले जाते हैं। ऐसा पाठक अनजाने में ही आत्मदेव की तीर्थयात्रा पर चल पड़ता है? और फिर स्वाभाविक ही है कि ज्ञानयज्ञ के द्वारा वह आत्मविकास प्राप्त करता हैकर्मकाण्ड की यज्ञविधि में? एक यज्ञकुण्ड में अग्नि प्रज्वलित करके उसमें अग्नि देवता का आह्वान किया जाता है। तत्पश्चात् यजमान उसमें द्रव्यरूप आहुतियाँ अर्पण करता है। इसी साम्य से? गीता में इस मौलिक शब्द ज्ञानयज्ञ का प्रयोग किया गया है। अध्यात्मशास्त्रों के अध्ययन तथा उनके तात्पर्यार्थ पर चिन्तन मनन करने से साधकों के मन में ज्ञानाग्नि प्रज्वलित होती है। इस ज्ञानाग्नि में एक विवेकी साधक अपने अज्ञान? मिथ्या धारणाएं एवं दुष्प्रवृत्तियों की आहुतियाँ प्रदान करता है। रूपक की भाषा में प्रयुक्त इस शब्द ज्ञानयज्ञ का यही आशय है। इसलिए? जो साधकगण श्रवण? मनन और निदिध्यासन के द्वारा प्रज्वलित ज्ञानाग्नि में अपने अहंकार? स्वार्थ एवं अन्य वासनाओं की आहुतियां देकर शुद्ध हो जाते हैं? वे पुरुष निश्चय ही? ईश्वर के महान पूजक और भक्त है। वे सर्वथा अभिनन्दन के पात्र हैं।अब? इस ज्ञान के श्रोता की भी प्रशंसा करते हुए उसे प्राप्त होने वाले फल को बताते हैं
English Translation By Swami Sivananda
18.70 And he who will study this sacred dialogue of ours, by him I shall have been worshipped by the sacrifice of wisdom, such is My conviction.