Verse: 18,39
मूल श्लोक :
यदग्रे चानुबन्धे च सुखं मोहनमात्मनः।निद्रालस्यप्रमादोत्थं तत्तामसमुदाहृतम्।।18.39।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।18.39।।निद्रा? आलस्य और प्रमादसे उत्पन्न होनेवाला जो सुख आरम्भमें और परिणाममें अपनेको मोहित करनेवाला है? वह सुख तामस कहा गया है।
।।18.39।। जो सुख मनुष्य को मोहित करने वाला होता है और जो उसकी संस्कृति को विकृति में परिवर्तित कर देता है वह तामस सुख माना गया है। मोह का अर्थ है आत्मा और अनात्मा के भेद का अभाव।तामस सुख के स्रोत हैं? निद्रा? आलस्य और प्रमाद। निद्रा का अर्थ सर्वविदित निद्रावस्था तो है ही? किन्तु वेदान्त दर्शन के अनुसार स्वस्वरूप के अज्ञान की अवस्था भी निद्रा कहलाती है। इस आत्म अज्ञान के कारण ही मनुष्य विषय भोगों में सुख की खोज करता है और उसमें ही आसक्त हो जाता है।आलस्य क्रियाशीलता रजोगुण का धर्म है और उसके विपरीत आलस्य तमोगुण का धर्म है। तामसी पुरुष की कर्म को टालने की प्रवृत्ति होती है और इस प्रकार आलस्य में ही वह अपने समय को व्यतीत कर देता है। यही उसका सुख है। ऐसा पुरुष विचार करने में भी आलसी होता है। इसलिए वह जीवन में यथार्थ निर्णय नहीं ले पाता।प्रमाद यह सत्त्वगुण के लक्षण सजगता और विवेक के सर्वथा विपरीत लक्षण है। प्रमादशील मनुष्य अपने हृदय के उच्च गुणों के आह्वान की अवहेलना और उपेक्षा करके निम्न स्तर के भोगों में रमता है। फलत वह दिन प्रतिदिन पशु के स्तर तक गिरता जाता है।निद्रा? आलस्य और प्रमाद से प्राप्त होने वाला सुख प्रारम्भ और अन्त में मनुष्य को मोहित करने वाला होता है और ऐसा सुख तामस माना गया है।प्रस्तुत प्रकरण का उपसंहार करते हुए भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं
English Translation By Swami Sivananda
18.39 That happiness which at first as well as in the seel deludes the self, and which arises from sleep, indolence and heedlessness that is declared to be Tamasic.