Verse: 18,27
मूल श्लोक :
रागी कर्मफलप्रेप्सुर्लुब्धो हिंसात्मकोऽशुचिः।हर्षशोकान्वितः कर्ता राजसः परिकीर्तितः।।18.27।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।18.27।।जो कर्ता रागी? कर्मफलकी इच्छावाला? लोभी? हिंसाके स्वभाववाला? अशुद्ध और हर्षशोकसे युक्त है? वह राजस कहा गया है।
।।18.27।। इस श्लोक में राजस कर्ता का सम्पूर्ण चित्रण किया गया है। उसके लिए प्रयुक्त विशेषणों को भी विशेष क्रम दिया गया है? जो अध्ययन करने योग्य है।इन्द्रियगोचर विषय को सत्य? सुन्दर एवं सुख का साधन समझने से उसके प्रति राग उत्पन्न होता है। यही राग अधिक तीव्र होने पर प्रेप्सा अर्थात् इच्छा का रूप धारण करता है। इसे यहाँ कर्मफल प्रेप्सु शब्द से दर्शाया गया है। कामना से अभिभूत पुरुष को इच्छित वस्तु प्राप्त हो जाने पर? उससे ही सन्तोष न होकर? उसका लोभ उत्पन्न होता है। वह पुरुष लुब्ध अर्थात् लोभी बन जाता है। संस्कृत की उक्ति है लोभात् पापस्य कारणम् अर्थात् लोभ से पाप के कारणों का उद्भव होता है यह लोभी पुरुष अपने लाभ के लिए हिंसा करने में भी प्रवृत्त हो सकता है। उसे लोगों के कष्ट और पीड़ा की कोई चिन्ता नहीं होती। वह अशुचि अर्थात् दुष्ट स्वभाव का बन जाता है। येनकेन प्रकारेण वह अपने ही स्वार्थ की सिद्धि चाहता है। और अन्त में? जब इष्ट अनिष्ट फलों की प्राप्ति होती है? तब उसे हर्षातिरेक या शोकाकुलता होना स्वाभाविक और अवश्यंभावी है। यह है? राजस कर्ता का सम्पूर्ण चित्रण।हम देखते हैं कि सामान्यत नैतिक एवं धार्मिक आचरण करने वाला व्यक्ति भी जब कभी काम के भूत से अभिभूत हो जाता है? तब उसके सद्गुण लुप्तप्राय हो जाते हैं और तत्पश्चात् उसके कर्म प्रतिशोधपूर्ण तथा योजनाएं दुष्ट और हिंसक होती हैं। ऐसा राजस कर्ता जीवन में दुख ही भोगता रहता है।अब? तामस कर्ता का वर्णन करते हैं
English Translation By Swami Sivananda
18.27 Passionate, desiring to obtain the reward of actions, greedy, cruel, impure, moved by joy and sorrow, such an agent is said to be Rajasic (passionate).