Verse: 17,4
मूल श्लोक :
यजन्ते सात्त्विका देवान्यक्षरक्षांसि राजसाः।प्रेतान्भूतगणांश्चान्ये यजन्ते तामसा जनाः।।17.4।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।17.4।।सात्त्विक मनुष्य देवताओंका पूजन करते हैं? राजस मनुष्य यक्षों और राक्षसोंका और दूसरे जो तामस मनुष्य हैं? वे प्रेतों और भूतगणोंका पूजन करते हैं।
।।17.4।। प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन में किसी न किसी आदर्श या पूजावेदी को अपनी सम्पूर्ण भक्ति अर्पित करता है। तत्पश्चात् अपने आदर्श के आह्वान के द्वारा अपनी इच्छा की पूर्ति चाहता है। शास्त्रीय भाषा में इसे पूजा कहते हैं। इस शब्द से केवल शास्त्रोक्त विधान की षोडशोपचार पूजाविधि ही नहीं समझनी चाहिए। उपर्युक्त परिभाषा के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी की आराधना करता है फिर उसका आराध्य नाम? धन? यश? कीर्ति? देवता आदि कुछ भी हो सकता है। प्रत्येक मनुष्य का आराध्य उसकी श्रद्धा के अनुसार ही होता है? जिसका वर्णन यहाँ किया गया है।सात्त्विक स्वभाव के लोग अपने श्रेष्ठ और दिव्य संस्कारों के कारण सहज ही देवताओं की अर्थात् दिव्य और उच्च आदर्शों की पूजा करते हैं।रजोगुणप्रधान लोग अत्यन्त महत्त्वाकांक्षी और क्रियाशील स्वभाव के होते है। इसलिए? वे यक्ष? राक्षसों की ही पूजा करते हैं।तात्पर्य यह है कि आराध्य का चयन भक्त के हृदय की मौन मांग के ऊपर निर्भर करता है। कोई भी व्यक्ति वस्त्रों का क्रय करने किसी पुस्तकालय में नहीं जायेगा। इसी प्रकार? रजोगुणी लोगों को कर्मशील आदर्श ही रुचिकर प्रतीत होते हैं।तामसिक लोग अपनी निम्नस्तरीय विषय वासनाओं की पूर्ति के लिए भूतों और प्रेतात्माओं की आराधना करते हैं। जगत् में भी यह देखा जाता है कि असत् शिक्षा और अनैतिकता से युक्त लोग अपनी दुष्ट और अपकारक महत्त्वाकांक्षाओं को पूर्ण करने के लिए प्राय नीच? प्रतिशोधपूर्ण और दुराचारी लोगों की (भूत? प्रेत) सहायता लेते हैं। ये नीच लोग यद्यपि शरीर से जीवित? किन्तु जीवन की मधुरता और सुन्दरता के प्रति मृत होते हैं।इसी अभिप्राय को इसके पूर्व भी अनेक श्लोकों में प्रकट किया जा चुका है। प्राय लोगों में भूतप्रेतों के विषय में जानने की अत्यधिक उत्सुकता रहती है। क्या प्रेतात्माओं का वास्तव में अस्तित्व होता है यह सबकी जिज्ञासा होती है? परन्तु गीता के प्रस्तुत प्रकरण का अध्ययन करने के लिए इस विषय में विचार करना निरर्थक है। इतना ही जानना पर्याप्त है कि भूत व प्रेत के द्वारा कुछ विशेष प्रकार की शक्तियों की ओर इंगित किया गया है? जो इस भौतिक जगत् में भी उपलब्ध हो सकती हैं।शुद्धान्तकरण के सात्त्विक? महत्त्वाकांक्षी राजसी और प्रमादशील तामसी जन क्रमश सहृदय मित्रों से सहायता? धनवान् और समर्थ लोगों से सुरक्षा और अपराधियों से शक्ति प्राप्त करने के लिए उपयुक्त देव? यक्ष और प्रेतात्माओं की पूजा करते हैं। मनुष्य के कार्यक्षेत्र से ही कुछ सीमा तक उसकी श्रद्धा को समझा जा सकता है।समाज के सत्त्वनिष्ठ पुरुष विरले ही होते हैं। सामान्यत राजसी और तामसी जनों की संख्या अधिक होती है और उनके पूजादि के प्रयत्न भी दोषपूर्ण होते हैं। कैसे भगवान् बताते हैं
English Translation By Swami Sivananda
17.4 The Sattvic or the pure men worship the gods; the Rajasic or the passionate worship the Yakshas and the Rakshasas; the others (the Tamasic or the deluded people) worship the ghosts and the hosts of the nature-spirits.