Verse: 17,10
मूल श्लोक :
यातयामं गतरसं पूति पर्युषितं च यत्।उच्छिष्टमपि चामेध्यं भोजनं तामसप्रियम्।।17.10।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।17.10।।जो भोजन अधपका? रसरहित? दुर्गन्धित? बासी और उच्छिष्ट है तथा जो महान् अपवित्र भी है? वह तामस मनुष्यको प्रिय होता है।
।।17.10।। यातयाम कालगणना की प्राचीन पद्धति के अनुसार एक दिन को आठ यामों में विभाजित किया जाता है। प्रति याम तीन घंटे का होता है। इसलिए तीन घंटे पूर्व पकाया गया अन्न यातयाम कहलाता है? जो भोजन के योग्य नहीं समझा जाता। वैसे इस शब्द का अर्थ बासी अन्न हो सकता है? परन्तु इसी श्लोक में पर्युषित अर्थात् बासी अन्न का स्वतन्त्र उल्लेख किया गया है अत यहाँ इसका दूसरा अर्थ अर्धपक्व अन्न समझना चाहिए।गतरस अधिक समय बीत जाने पर अन्न का रस समाप्त हो जाता है? परन्तु तामसी लोगों को यही अन्न रुचिकर लगता है। दक्षिण भारत में चावल को पकाकर रातभर जल में भिगोकर रखते हैं और दूसरे दिन उसे खाते हैं। यद्यपि अनेक लोगों को वह अन्न रुचिकर लगता है? परन्तु वह बासी और रसहीन होने से तामस भोजन ही कहलायेगा। सम्भवत उत्तर भारत में? बासी रोटी खायी,जाती हो।पूति तमोगुणी लोगों को दुर्गन्धयुक्त आहार स्वादिष्ट लगता है? जबकि अन्य लोगों को वह दुर्गन्ध असह्य होती है।पर्युषित (बासी) रात भर का रखा हुआ अन्न बासी कहलाता है। इसमें हम मादक द्रव्यों को भी समाविष्ट कर सकते हैं। तामसी लोगों को मद्यपानादि प्रिय होता है। अत्यन्त अज्ञानी और निम्न संस्कृति के घृणित व्यक्तियों को अशुद्ध? अपवित्र तथा उच्छिष्ट (जूठा? त्यागा हुआ) भोजन प्रिय होता है। अब? त्रिविध यज्ञों का वर्णन करते हैं
English Translation By Swami Sivananda
17.10 That which is state, tasteless, putrid, rotten, refuse and impure, is the food liked by the Tamasic.