Verse: 16,9
मूल श्लोक :
एतां दृष्टिमवष्टभ्य नष्टात्मानोऽल्पबुद्धयः।प्रभवन्त्युग्रकर्माणः क्षयाय जगतोऽहिताः।।16.9।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।16.9।।उपर्युक्त (नास्तिक) दृष्टिका आश्रय लेनेवाले जो मनुष्य अपने नित्य स्वरूपको नहीं मानते? जिनकी बुद्धि तुच्छ है? जो उग्रकर्मा और संसारके शत्रु हैं? उन मनुष्योंकी सामर्थ्यका उपयोग जगत्का नाश करनेके लिये ही होता है।
।।16.9।। पूर्व श्लोक में वर्णित दृष्टि का अवलम्बन करने वाले लोग किसी सत्य अधिष्ठान में श्रद्धा नहीं रखते हैं। यदि कामवासना को ही मूल कारण समझकर समाज में पाशविक प्रवृत्तियों को प्रोत्साहित किया जाये? तो उसका परिणाम सर्वत्र अशान्ति और कलह? विध्वंस और विनाश ही होगा।नष्टात्मान केवल वही पुरुष सन्तुलित व्यक्तित्व का हो सकता है? जिसने स्वयं को सम्यक् प्रकार से समझ लिया है। जब कभी मनुष्य को स्वयं का ही विस्मरण हो जाता है? तब वह अपने जन्म? शिक्षा? संस्कृति और सामाजिक प्रतिष्ठा के सर्वथा विपरीत एक विक्षिप्त अथवा मदोन्मत्त पुरुष के समान निन्दनीय व्यवहार करता है। पशुवत व्यवहार करता हुआ वह अपने विकास की दिव्य प्रतिष्ठा का अपमान करता है।अल्पबुद्धय जब कोई पुरुष जगत् के अधिष्ठान के रूप में श्रेष्ठ और दिव्य सत्य का अस्तित्व ही स्वीकार नहीं करता है? तब वह अत्यन्त आत्मकेन्द्रित और स्वार्थी पुरुष बन जाता है। तत्पश्चात् उसके जीवन का एकमात्र लक्ष्य अधिकाधिक व्यक्तिगत लाभ अर्जित करना होता है। विषय वासनाओं की तृप्ति के द्वारा वह परम सन्तोष और आनन्द प्राप्त करने का सर्वसम्भव प्रयत्न करता है? परन्तु अन्त में निराशा और विफलता ही उसके हाथ लगती है। करुणासागर भगवान् श्रीकृष्ण उन्हें अल्पबुद्धि कहकर उनके प्रति अपनी सहानुभूति व्यक्त करते हैं।उग्रकर्मी यदि कोई व्यक्ति वास्तव में लोकतान्त्रिक और सहिष्णु विचारों का हो तो उसके मन में यह प्रश्न उत्पन्न हो सकता है कि यदि कोई नास्तिक भोगवादी पुरुष पारमार्थिक सत्य में विश्वास नहीं भी करता है? तो अन्य लोगों को उससे भिन्न सत्य श्रद्धा और विचार रखने की स्वतन्त्रता क्यों न हो ऐसे प्रश्न का पूर्वानुमान करके भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं कि आसुरी स्वभाव के श्रद्धाहीन पुरुष में यही विवेक नहीं रह पाता है और वह सभी स्तरों पर निरंकुश व्यवहार करने लगता है। अपने स्वार्थ से प्रेरित होकर कभीकभी ऐसे शक्तिशाली लोग अपने युग में घोर? विपत्तियों को उत्पन्न कर देते हैं। ऐतिहासिक दृष्टि से? आज का जगत् उसी संकटपूर्ण स्थति से गुजर रहा है जिसके विषय में गीता ने पूर्वानुमान के साथ बहुत पहले ही घोषणा कर दी थी जो भौतिकवादी आसुरी लोग सत्य में श्रद्धा नहीं रखते हैं? वे अनजाने ही समाज के सामंजस्य में ऐसी विषमता और विकृति उत्पन्न करते हैं कि जिसके कारण सम्पूर्ण विश्व विनाशकारी युद्ध के रक्तपूर्ण दलदल में फँस जाता है।आगे कहते हैं
English Translation By Swami Sivananda
16.9 Holding this view, these ruined souls of small intellect and fierce deeds, come forth as the enemies of the world for its destruction.