Verse: 16,21
मूल श्लोक :
त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः।कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्।।16.21।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।16.21।।काम? क्रोध और लोभ -- ये तीन प्रकारके नरकके दरवाजे जीवात्माका पतन करनेवाले हैं? इसलिये इन तीनोंका त्याग कर देना चाहिये।
।।16.21।। स्वर्ग सुखरूप है? तो नरक दुखरूप। अत इसी जीवन में भी मनुष्य अपनी मनस्थिति में स्वर्ग और नरक का अनुभव कर सकता है। शास्त्र प्रमाण से स्वर्ग और नरक के अस्तित्व का भी ज्ञान होता है। इस श्लोक में नरक के त्रिविध द्वार बताये गये हैं। इस सम्पूर्ण अध्याय का प्रय़ोजन मनुष्य का आसुरी अवस्था से उद्धार कर उसे निस्वार्थ सेवा तथा आत्मानन्द का अनुभव कराना है।काम? क्रोध और लोभ जहाँ काम है वहीं क्रोध का होना स्वाभाविक है। किसी विषय को सुख का साधन समझकर उसका निरन्तर चिन्तन करने से उस विषय की कामना उत्पन्न होती है। यदि इस कामनापूर्ति में कोई बाधा आती है? तो उससे क्रोध उत्पन्न होता है। यदि कामना तीव्र हो? तो क्रोध भी इतना उग्र रूप होता है कि वह जीवन की नौका को इतस्तत प्रक्षेपित कर? छिन्नभिन्न करके अन्त में उसे डुबो देता है।यदि कामना पूर्ण हो जाती है? तो मनुष्य का लोभ बढ़ता जाता है और इस प्रकार? उसकी शक्ति का ह्रास होता जाता है। असन्तुष्टि का वह भाव लोभ कहलाता है? जो हमारे वर्तमान सन्तुष्टि के भाव को विषाक्त करता है। लोभी पुरुष को कभी शान्ति और सुख प्राप्त नहीं होता? क्योंकि असन्तोष ही लोभ का स्वभाव है।काम? क्रोध और लोभ के इस क्रिया प्रतिक्रिया रूप संबंध को हम समझ लें? तो भगवान् का निष्कर्ष हमें स्वीकार करना ही पड़ेगा कि इसलिए इन तीनों को त्याग देना चाहिए।इन तीनों के त्याग की स्तुति करते हुए कहते हैं
English Translation By Swami Sivananda
16.21 Triple is the gate of this hell, destructive of the self lust, anger and greed; therefore one should abandon these three.