Verse: 16,20
मूल श्लोक :
असुरीं योनिमापन्ना मूढा जन्मनि जन्मनि।मामप्राप्यैव कौन्तेय ततो यान्त्यधमां गतिम्।।16.20।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।16.20।।हे कुन्तीनन्दन वे मूढ मनुष्य मेरेको प्राप्त न करके ही जन्मजन्मान्तरमें आसुरी योनिको प्राप्त होते हैं? फिर उससे भी अधिक अधम गतिमें अर्थात् भयङ्कर नरकोंमें चले जाते हैं।
।।16.20।। इस श्लोक का तात्पर्य यह है कि जब तक मनुष्य अपनी आसुरी प्रवृत्तियों के वश में उनका दास बना रहता है तब तक वह उसी प्रकार के हीन जन्मों को प्राप्त होता रहता है। वह आत्मा के परमानन्द स्वरूप का अनुभव नहीं कर पाता है।अब तक दैवी और आसुरी सम्पदाओं का स्पष्ट एवं विस्तृत विवेचन किया गया है। बहुसंख्यक लोगों की न्यूनाधिक मात्रा में असुरों की श्रेणी में ही गणना की जा सकती है। परन्तु एक आध्यात्मिक साधक को केवल ऐसे वर्णनों से सन्तोष नहीं होता। वह अपनी पतित अवस्था से स्वयं का उद्धार करना चाहता है। अत? अब भगवान् श्रीकृष्ण अर्जुन के माध्यम से मानवमात्र के आत्मविकास का पथ प्रदर्शन करते हैं। कोई भी व्यक्ति नित्य निरन्तर नारकीय यातनाओं का ही भागीदार नहीं हो सकता है शाश्वत नरक प्राप्ति का मत अयुक्तियुक्त और अदार्शनिक है।भगवान् कहते हैं
English Translation By Swami Sivananda
16.20 Entering into demoniacal wombs and deluded, birth after birth, not attaining Me, they thus fall, O Arjuna, into a condition still lower than that.