Verse: 15,8
मूल श्लोक :
शरीरं यदवाप्नोति यच्चाप्युत्क्रामतीश्वरः।गृहीत्वैतानि संयाति वायुर्गन्धानिवाशयात्।।15.8।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।15.8।।जैसे वायु गन्धके स्थानसे गन्धको ग्रहण करके ले जाती है? ऐसे ही शरीरादिका स्वामी बना हुआ जीवात्मा भी जिस शरीरको छोड़ता है? वहाँसे मनसहित इन्द्रियोंको ग्रहण करके फिर जिस शरीरको प्राप्त होता है? उसमें चला जाता है।
।।15.8।। देहेन्द्रियादि का ईश्वर अर्थात् स्वामी है जीव। जब तक वह किसी एक देह मे रहता है? तब तक सूक्ष्म शरीर (इन्द्रियाँ और अन्तकरण) को धारण किये रहता है और असंख्य प्रकार के कर्म करता है। अपनी वासनाओं के अनुसार वह कर्म करता है और फिर कर्मो के नियमानुसार विविध फलों को भोगने के लिये उसे अन्यान्य शरीर ग्रहण करने पड़ते हैं। तब एक शरीर का त्याग करते समय वह सूक्ष्म शरीर को समेट लेता है और अन्य शरीर में जा कर पुन उसके द्वारा पूर्ववत् व्यवहार करता है।सूक्ष्म शरीर का स्थूल शरीर से सदा के लिये वियोग स्थूल शरीर के लिये मृत्यु है। मृत देह का आकार पूर्ववत् दिखाई देता है?किन्तु विषय ग्रहण? अनुभव तथा विचार ग्रहण करने की क्षमता उसमे नहीं होती? क्योंकि ये समस्त कार्य सूक्ष्म शरीर के होते हैं। जीव की उपस्थिति से ही देह को एक व्यक्ति के रूप में स्थान प्राप्त होता है।जिस प्रकार प्रवाहित किया हुआ वायु पुष्प? चन्दन? इत्र आदि सुगन्धित वस्तुओं की सुगन्ध को एक स्थान से अन्य स्थान बहा कर ले जाता है? उसी प्रकार जीव समस्त इन्द्रियादि को लेकर जाता है। वायु और सुगन्ध दृष्टिगोचर नहीं होते? उसी प्रकार देह को त्यागते हुये सूक्ष्म जीव को भी नेत्रों से नहीं देखा जा सकता है। जीव की समस्त वासनाएं भी उसी के साथ रहती हैं।इस श्लोक में जीव को देहादि संघात का ईश्वर कहने का अभिप्राय केवल इतना ही है कि उसी की उपस्थिति में विषय ग्रहण? विचार आदि का व्यवहार सुचारु रूप से चलता रहता है। वह इन उपाधियों का शासक और नियामक है। जिस प्रकार? किसी शासकीय अधिकारी का स्थानान्तर होने पर वह अपने घर की समस्त वस्तुओं को सन्दूकों में रखकर अपने नये स्थान पर पहुँचता है। तत्पश्चात्? वहाँ पुन अपने सामान को खोलकर नये गृह को सजाता है। ठीक इसी प्रकार जीवात्मा भी एक स्थूल शरीर को त्यागते समय समस्त इन्द्रियादि को एकत्रित कर शरीर को त्याग देता है? और फिर नवीन शरीर को धारण कर पुन सूक्ष्म शरीर के द्वारा समस्त व्यवहार करने लगता है। वेदान्त मे शरीर को भोगायतन कहते हैं। उपर्युक्त श्लोक वस्तुत उपनिषदों के ही सिद्धान्तों का ही सारांश है।वे इन्द्रियाँ कौन सी हैं सुनो
English Translation By Swami Sivananda
15.8 When the Lord (as the individual soul) obtains a body and when He leaves it, He takes these and goes (with them) as the wind takes the scents from their seats (flowers, etc.).