Verse: 15,3
मूल श्लोक :
न रूपमस्येह तथोपलभ्यते नान्तो न चादिर्न च संप्रतिष्ठा।अश्वत्थमेनं सुविरूढमूल मसङ्गशस्त्रेण दृढेन छित्त्वा।।15.3।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।15.3।।इस संसारवृक्षका जैसा रूप देखनेमें आता है? वैसा यहाँ (विचार करनेपर) मिलता नहीं क्योंकि इसका न तो आदि है? न अन्त है और न स्थिति ही है। इसलिये इस दृढ़ मूलोंवाले संसाररूप अश्वत्थवृक्षको दृढ़ असङ्गतारूप शस्त्रके द्वारा काटकर --
।।15.3।। See Commentary under 15.4
English Translation By Swami Sivananda
15.3 Its form is not perceived here as such, neither its end nor its origin, nor its foundation nor resting place: having cut asunder this firmly rooted peepul tree with the strong axe of non-attachment.