Verse: 15,14
मूल श्लोक :
अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रितः।प्राणापानसमायुक्तः पचाम्यन्नं चतुर्विधम्।।15.14।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।15.14।।प्राणियोंके शरीरमें रहनेवाला मैं प्राणअपानसे युक्त वैश्वानर होकर चार प्रकारके अन्नको पचाता हूँ।
।।15.14।। वैश्वानर वही चैतन्यस्वरूप परमात्मा समस्त जीवित प्राणियों के शरीरों में जीवन की उष्णता के रूप में व्यक्त होता है। इस उष्णता के अभाव में देह मृत हो जाता है। अन्न से जीवन द्रव्य बनाने की प्रक्रिया से शरीर में उष्णता उत्पन्न होती है और शरीर के अन्तरावयव स्वत अपना कार्य करते रहते हैं। जब तक जीवनी शक्ति शरीर में प्रवाहित होती रहती है? तब तक इन शारीरिक प्रक्रियाओं का व्यक्ति को न भान होता है और न उसे उनके लिये कोई सजग प्रयत्न ही करना पड़ता है।प्राणियों के देह में स्थित जठराग्नि भी जो अन्न को पचाती है परमात्मा की ही एक अभिव्यक्ति है? जिसे यहाँ वैश्वानर कहा गया है।मैं चतुर्विध अन्न को पचाता हूँ एक स्वस्थ प्राणी की पाचनशक्ति सभी प्रकार के अन्न को पचा सकती है। यहाँ अन्न का चतुर्विध वर्गीकरण उसके भक्षण के प्रकार पर आधारित है। प्रथम है भक्ष्य? अर्थात् जिसे दांतों से चबाकर खाना पड़ता है? जैसे रोटी आदि (2) भोज्य अथवा पेय जिसे निगला जाता है? जैसे दूध आदि (3) चोष्य जिसे चूसना पड़ता है? जैसे आम? गन्ना आदि और (4) लेह्य जिसे चाटना पड़ता है? जैसे मधु? चटनी आदि। इस चतुर्विध अन्न में समस्त प्रकार के सामिष? निरामिष? पक्व और अपक्व आहारों का समावेश हो जाता है। मुख के द्वारा भक्षण किये गये समस्त प्रकार के अन्न का पाचन तथा शरीर के लिये आवश्यक उसके रूपान्तर का कार्य पाचन क्रिया के द्वारा ही संभव होता है? और इस पाचन क्रिया की यह क्षमता परमात्मा की ही एक अभिव्यक्ति है।प्राण और अपान से युक्त होकर समस्त प्राणियों के शरीरों में होने वाली ग्रहण और विसर्जन की क्रियाओं को क्रमश प्राण और अपान कहा जाता है। तथापि इनका और अधिक व्यापक अर्थ यहाँ स्वीकार किया जा सकता है। चैतन्य आत्मा न केवल वैश्वानर के रूप में ग्रहण किये गये अन्न को पचाता ही है? वरन् वही चैतन्य प्राण के रूप में व्यक्त होकर भक्षण किये हुये अन्न को अन्ननलिका द्वारा पेट तक पहुँचाता है। पाचन के पश्चात् यही आत्मा आंतों को मलविसर्जन की क्षमता प्रदान करता है। सारांशत? परमात्मा ही हमें अन्न के भक्षण? उसके पाचन तथा अनावश्यक मल के विसर्जन के कार्यों में सहायता करता है।और
English Translation By Swami Sivananda
15.14 Having become the fire Vaisvanara, I abide in the body of living beings and, associated with the Prana and the Apana, digest the fourfold food.