Verse: 15,11
मूल श्लोक :
यतन्तो योगिनश्चैनं पश्यन्त्यात्मन्यवस्थितम्।यतन्तोऽप्यकृतात्मानो नैनं पश्यन्त्यचेतसः।।15.11।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।15.11।।यत्न करनेवाले योगीलोग अपनेआपमें स्थित इस परमात्मतत्त्वका अनुभव करते हैं। परन्तु जिन्होंने अपना अन्तःकरण शुद्ध नहीं किया है? ऐसे अविवेकी मनुष्य यत्न करनेपर भी इस तत्त्वका अनुभव नहीं करते।
।।15.11।। जो साधक चित्त को एकाग्र करने तथा बुद्धि को कामनादि की निवृत्ति के द्वारा शुद्ध करने में सफल हो जाते हैं? केवल वे ही लोग आत्मा के वैभव को जान पाते हैं और इसके अनन्तत्व का अनुभव भी करते हैं। परन्तु यह भी सत्य है कि जो केवल यन्त्रवत् अत्यधिक साधना ही करते रहते हैं? यह आवश्यक नहीं कि उन्हें सफलता प्राप्त ही हो जाये। अनेक ऐसे साधक हैं? जिन्हें इस बात का दुख होता है कि वर्षों की उनकी नियमित साधना के होते हुये भी उनकी इच्छित प्रगति नहीं हुई है। इसका क्या कारण हो सकता है इस विवादास्पद प्रश्न का अत्यन्त युक्तियुक्त उत्तर देते हुये भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं यद्यपि वे यत्न करते हैं? किन्तु अशुद्ध अन्तकरण वाले अविवेकी लोग आत्मा को नहीं देखते हैं। ध्यान के फल की प्राप्ति के लिये दो आवश्यक गुण हैं (क) चित्तशुद्धि अर्थात् अहंकार और स्वार्थजनित विक्षेपों का अभाव तथा? (ख) वेदान्त प्रमाण के द्वारा आत्मानात्मविवेक? जिसके द्वारा अज्ञान आवरण नष्ट हो जाता है। इन दोनों के अभाव में आत्मज्ञान होना सर्वथा असंभव है। अत साधकों को कर्मयोग और भक्तियोग के द्वारा चित्तशुद्धि प्राप्त कर आत्मविचार करना चाहिये।अब तक के विवेचन में आत्मा को इंगित करते हुये कहा गया था कि? (1) उसे भौतिक प्रकाश के स्रोतों सूर्य? चन्द्रमा और अग्नि के द्वारा प्रकाशित नहीं किया जा सकता (2) जिसे प्राप्त होने पर संसार में पुनरावृत्ति नहीं होती और? (3) समस्त जीव मानो उसके अंश हैं।इसके पश्चात्? अगले चार श्लोकों में परमात्मा के स्वरूप तथा उसकी व्यापकता का वर्णन किया गया है कि वह (क) सर्वप्रकाशक चैतन्य का प्रकाश है? (ख) सर्वपोषक जीवन तत्त्व है? (ग) समस्त जीवित प्राणियों के शरीर में जीवन की उष्णता है और (घ) सभी के हृदय में वह आत्मस्वरूप से स्थित है।भगवान् कहते हैं
English Translation By Swami Sivananda
15.11 The Yogins striving (for perfection) behold Him dwelling in the Self; but, the unrefined and unintelligent, even though striving, see Him not.