Verse: 14,22
मूल श्लोक :
श्री भगवानुवाचप्रकाशं च प्रवृत्तिं च मोहमेव च पाण्डव।न द्वेष्टि सम्प्रवृत्तानि न निवृत्तानि काङ्क्षति।।14.22।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।14.22।।श्रीभगवान् बोले -- हे पाण्डव प्रकाश? प्रवृत्ति तथा मोह -- ये सभी अच्छी तरहसे प्रवृत्त हो जायँ तो भी गुणातीत मनुष्य इनसे द्वेष नहीं करता? और ये सभी निवृत्त हो जायँ तो इनकी इच्छा नहीं करता।
।।14.22।। जो उपाधियां या वस्तुएं तीन गुणों का कार्य हैं केवल उन पर ही त्रिगुणों का प्रभाव पड़ सकता है? उनसे परे आत्मतत्त्व पर नहीं। अत आत्मज्ञान होने के पश्चात् भी ये उपाधियां पूर्ववत् व्यवहार करती रहती हैं और उनपर गुणों का प्रभाव भी पड़ सकता है। परन्तु ज्ञानी पुरुष उनसे किसी प्रकार से तादात्म्य नहीं करता। समस्त परिस्थितियों में सदैव समत्व भाव में स्थित रहना अनुभवी पुरुष का प्रमुख लक्षण है और यही पूर्णत्व का सार है।प्रकाश? प्रवृत्ति और मोह ये क्रमश सत्त्व? रज और तमोगुण के कार्य हैं। यहाँ त्रिगुणों का निर्देश उनके कार्यों के द्वारा किया गया है। सामान्यत अज्ञानी मनुष्य के मन में जब रजोगुण के कार्य विक्षेप अथवा तमोगुण के कार्य निद्रा? प्रमाद आदि प्रभावशाली होते हैं? तब वह उनका द्वेष करता है और सत्त्वगुण के कार्य ज्ञान? सुख और शान्ति के होने पर वह उनसे प्रीति रखता है। सत्त्वगुण निवृत्त हो जाय तो वह उसकी इच्छा करके उसके लिये लालायित रहता है। इन सबका कारण त्रिगुणों के साथ अविद्यामूलक तादात्म्य है।ज्ञानी की स्थिति अज्ञानी से सर्वथा भिन्न होती है। वह जानता है कि त्रिगुणों का साक्षी आत्मा उन गुणों तथा उनके कार्यों से सदैव असंगअसंस्पृष्ट रहता है। अत वह रज और तम के प्रवृत्त होने पर न उनसे द्वेष रखता है और न सत्त्वगुण के प्रवृत्त होने की कामना। उसकी सुखशान्ति इन गुणों की प्रवृत्ति अथवा निवृत्ति पर निर्भर नहीं करती। किसी लखपति धनी व्यक्ति को संयोगवशात् पचीस पैसे मिलने या न मिलने से कोई अन्तर नहीं पड़ता। ऐसा हो सकता है कि कभी वह नीचे झुककर उस पैसे के सिक्के को उठा ले? किन्तु उसे वह? हर्षातिरेक नहीं होगा? जो एक दरिद्र व्यक्ति को समान परिस्थिति में होता होगा।इस प्रकार? समस्त उपाधियों के तादात्म्य को त्यागकर आत्मानुभूति में रमा पुरुष ही त्रिगुणातीत या मुक्त कहलाता है। संसार के दुख उसे कदापि विचलित नहीं कर सकते।अब? उस ज्ञानी पुरुष के आचरण का वर्णन करते हैं
English Translation By Swami Sivananda
14.22 The Blessed Lord said When light, activity and delusion are present, he hates them not, nor does he long for them when they are absent.