Verse: 13,8
मूल श्लोक :
अमानित्वमदम्भित्वमहिंसा क्षान्तिरार्जवम्।आचार्योपासनं शौचं स्थैर्यमात्मविनिग्रहः।।13.8।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।13.8।।मानित्व(अपनेमें श्रेष्ठताके भाव) का न होना? दम्भित्व(दिखावटीपन) का न होना? अहिंसा? क्षमा? सरलता? गुरुकी सेवा? बाहरभीतरकी शुद्धि? स्थिरता और मनका वशमें होना।
।।13.8।। अमानित्व स्वयं को पूजनीय व्यक्ति समझना मान कहलाता है। उसका अभाव अमानित्व है।अदम्भित्व अपनी श्रेष्ठता का प्रदर्शन न करने का स्वभाव।अहिंसा शरीर? मन और वाणी से किसी को पीड़ा न पहुँचाना।क्षान्ति किसी के अपराध किये जाने पर भी मन में विकार का न होना क्षान्ति अर्थात् सहनशक्ति है।आर्जव हृदय का सरल भाव? अकुटिलता।आचार्योपासना गुरु की केवल शारीरिक सेवा ही नहीं? वरन् उनके हृदय की पवित्रता और बुद्धि के तत्त्वनिश्चय के साथ तादात्म्य करने का प्रयत्न ही वास्तविक आचार्योपासना है।शौचम् शरीर? वस्त्र? बाह्य वातावरण तथा मन की भावनाओं? विचारों? उद्देश्यों तथा अन्य वृत्तियों की शुद्धि भी इस शब्द से अभिप्रेत है।स्थिरता जीवन के सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए दृढ़ निश्चय और एकनिष्ठ प्रयत्न।आत्मसंयम जगत् के साथ व्यवहार करते समय इन्द्रियों तथा मन पर संयम होना।
English Translation By Swami Sivananda
13.8 Humility, unpretentiousness, non-injury, forgiveness, uprightness, service of the teacher, purity, steadfastness, self-control.