Verse: 13,4
मूल श्लोक :
तत्क्षेत्रं यच्च यादृक् च यद्विकारि यतश्च यत्।स च यो यत्प्रभावश्च तत्समासेन मे श्रृणु।।13.4।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।13.4।।वह क्षेत्र जो है? जैसा है? जिन विकारोंवाला है और जिससे जो पैदा हुआ है तथा वह क्षेत्रज्ञ भी जो है और जिस प्रभाववाला है? वह सब संक्षेपमें मेरेसे सुन।
।।13.4।। भगवान् श्रीकृष्ण न केवल क्षेत्र की वस्तुओं का उल्लेख ही करेंगे? वरन् क्षेत्र के गुण धर्म? उसके विकार तथा कौन से कारण से ऋ़ौन सा कार्य उत्पन्न हुआ है? इसका भी वर्णन करेंगे। उसी प्रकार? क्षेत्रज्ञ का स्वरूप तथा उपाधियों से सम्बद्ध उसके प्रभाव को भी इस अध्याय में बतायेंगे। ये सब? मुझसे संक्षेप में सुनो।अनन्त आत्मा के स्वरूप को दर्शाने वाले विशेषणों को पुन दोहराने मात्र से अथवा उस पर विशेष बल देकर कहने से एक निष्ठावान् साधक को कोई विशेष लाभ भी नहीं होता और न उसके विकास में कोई सहायता मिलती है। जिन कारणों से हमारे जीवन की समस्यायें उत्पन्न होती हैं उनकी ओर से दृष्टि फेर लेने का अर्थ है? समस्या को नहीं सुलझाना। हमारे आसपास का यह जगत्? जिसे हमने ही प्रेक्षित किया है? तथा वे ही प्रक्रियायें जिनके द्वारा हम कार्य करते हुये असंख्य विषयों? भावनाओं और विचारों की विविधता को देखते हैं इन सबका हमें सूक्ष्म निरीक्षण तथा अध्ययन करना चाहिये। इसकी उपेक्षा करने का अर्थ स्वयं को विशाल आवश्यक सारभूत ज्ञान से वंचित रखना है। यह अपनी ही प्रवंचना है।शत्रुओं के विरुद्ध युद्धनीति सम्बन्धी योजना बनाने के लिए शत्रुपक्ष की रणनीति का कमसेकम सामान्य ज्ञान होना आवश्यक होता है। इसी प्रकार? क्षेत्र से युद्ध करके उस पर विजय पाकर उसके बन्धनों से स्वयं को मुक्त करने के लिये यह जानना आवश्यक है कि क्षेत्र क्या है तथा परिस्थिति विशेष में ये उपाधियाँ किस प्रकार कार्य और व्यवहार करती हैं।इस प्रकार? शरीरशास्त्र? जीवशास्त्र? मनोविज्ञान तथा अन्य प्राकृतिक विज्ञान की शाखायें भी जीवन को समझने में अपना योगदान देती हैं। अध्यात्म का ज्ञानमार्ग समस्त लौकिक विज्ञानों का चरम बिन्दु है और उसकी पूर्तिस्वरूप है। इस बात की पुष्टि इसी तथ्य से होती है कि? युद्धभूमि पर भी अर्जुन को इस ज्ञान का उपदेश देते समय? भगवान् इस बात पर बल देने के लिए भूलते नहीं कि इस क्षेत्र का सम्पूर्ण ज्ञान होना महत्व की बात है। इसका हमें सूक्ष्म अध्ययन करना चाहिये।क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के याथात्म्य को देखने? अध्ययन करने और समझने में शिष्य की अभिरुचि उत्पन्न करने के लिए भगवान् इस विषय वस्तु की स्तुति करते हुये कहते हैं
English Translation By Swami Sivananda
13.4 What the field is and of what nature, what are its modifications and whence it is and also who He is and what His powers are hear all that from Me in brief.