Verse: 13,35
मूल श्लोक :
क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोरेवमन्तरं ज्ञानचक्षुषा।भूतप्रकृतिमोक्षं च ये विदुर्यान्ति ते परम्।।13.35।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।13.35।।इस प्रकार जो ज्ञानरूपी नेत्रसे क्षेत्र और क्षेत्रज्ञके अन्तर(विभाग) को तथा कार्यकारणसहित प्रकृतिसे स्वयंको अलग जानते हैं? वे परमात्माको प्राप्त हो जाते हैं।
।।13.35।। आत्मा सर्वप्रकाशक होने से प्रकाश्य के धर्मों से लिप्त नहीं होता है। इस सिद्धांत का वर्णन करने के पश्चात् भगवान् श्रीकृष्ण यहाँ कहते हैं कि मानव जीवन का परम लक्ष्य है? क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के स्वरूप? कार्य और सम्बन्ध को जानकर अपने परमात्मस्वरूप का साक्षात्कार करना। जीवन का यह साध्य वही साधक सम्पादित कर सकता है जो इस अध्याय में निर्दिष्ट विवेक और हृदय के गुणों से साधन सम्पन्न होता है। केवल वही साधक अपने एकमेव अद्वितीय सच्चिदानन्द ब्रह्मस्वरूप का साक्षात् अनुभव कर सकता है। आत्मानुभव का साधन अन्तर्प्रज्ञा कहलाता है? जिसे हिन्दू शास्त्रों में ज्ञानचक्षु कहा गया है।परमात्मस्वरूप में स्थित होकर जिन्होंने प्रकृति (क्षेत्र? अव्यक्त? अविद्या) के आत्यन्तिक अभाव को पहचान लिया है? वे ही पूर्ण ज्ञानी पुरुष हैं। केवल अविद्या वशात् ही प्रकृति की प्रतीति होती है वास्तव में केवल ब्रह्म ही एक पारमार्थिक सत्य है।conclusion तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रेश्रीकृष्णार्जुनसंवादे क्षेत्रक्षेत्रज्ञविज्ञानयोगो नाम त्रयोदशोऽध्याय।।इस प्रकार? श्रीकृष्णार्जुनसंवाद के रूप में ब्रह्मविद्या और योगशास्त्रस्वरूप श्रीमद्भगवद्गीतोपनिषद् का क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोग नामक तेरहवाँ अध्याय समाप्त होता है।गीता का यह अतिशय उज्ज्वल अध्याय है? जो हमें अपने नित्यशुद्धबुद्धमुक्त आत्मस्वरूप के ध्यान करने के साक्षात् साधन का उपदेश देता है? जिसके अभ्यास से हम अपरोक्षनुभूति प्राप्त कर सकते हैं। स्वप्न से जाग जाने का अर्थ स्वप्नावस्था के सब दुखों का अन्त हो जाना है। जाग्रत् ? स्वप्न और सुषुप्ति अवस्थाओं के मध्य यातायात की कोई निश्चित सीमा नहीं निर्धारित की गयी है अर्थात् अवस्थान्तर के लिए हमें कोई परिश्रम नहीं करना पड़ता है। इसी प्रकार हमारा संसारदुख प्रकृति के साथ हमारे अविद्याजनित मिथ्या तादात्म्य के कारण ही है। अत क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के विवेक के द्वारा प्राप्त आत्मबोध से संसार की निवृत्ति हो जाती है। यही एकमात्र ज्ञेय वस्तु है। सम्पूर्ण गीता में? परमात्मा का इससे अधिक स्पष्ट और साक्षात् निर्देशन हमें किसी अन्य अध्याय में नहीं मिलता है।
English Translation By Swami Sivananda
13.35 They who, by the eye of knowledge, perceive the distinction between the field and its knower and also the liberation from the Nature of being, go to the Supreme.