Verse: 13,30
मूल श्लोक :
प्रकृत्यैव च कर्माणि क्रियमाणानि सर्वशः।यः पश्यति तथाऽऽत्मानमकर्तारं स पश्यति।।13.30।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।13.30।।जो सम्पूर्ण क्रियाओंको सब प्रकारसे प्रकृतिके द्वारा ही की जाती हुई देखता है और अपनेआपको अकर्ता देखता (अनुभव करता) है? वही यथार्थ देखता है।
।।13.30।। विभिन्न मोटर कम्पनियों के द्वारा निर्मित विभिन्न अश्वशक्ति की असंख्य कारों में से प्रत्येक वाहन का कार्य सम्पादन विशिष्ट होता है। इससे हम यह नहीं कह सकते कि इन कारों में प्रयुक्त पेट्रोल विभिन्न क्षमताओं का है। बल्ब अनेक हैं? परन्तु विद्युत् तो एक ही है। ये दृष्टान्त इस श्लोक में व्यक्त किये गये आत्मैकत्व के सिद्धान्त को भली भाँति स्पष्ट करते हैं।सब कर्म आत्मा की केवल उपस्थिति में प्रकृति से उत्पन्न उपाधियों के द्वारा ही किये जाते हैं। अब विभिन्न व्यक्तियों के कर्मों में जो भेद है? वह उनके विभिन्न शुभाशुभ संस्कारों और इच्छाओं के कारण है? आत्मा के कारण नहीं। केवल क्षेत्र या क्षेत्रज्ञ में कोई कर्म नहीं होते हैं।आत्मा अकर्ता है कर्म करने के लिये शरीरादि कारणों की और मन में इच्छा की आवश्यकता होती है? परन्तु आत्मा सर्वव्यापी? निराकार और सर्व उपाधि रहित होने से उसमें कोई कर्म ही नहीं हो सकते? तो फिर वह कर्ता कैसे हो सकता है आत्मा के अकर्तृत्व के विषय में अन्य कारण भी आगे प्रस्तुत किये जायेंगे।जो प्रकृति की क्रियाओं में आत्मा को अकर्ता जानता है? वही पुरुष वास्तव में तत्त्व को देखता है। उपाधियों के अभाव में समस्त जीवों के गुणों और कर्मों की विलक्षणता का अभाव होकर केवल परमात्मा ही स्वस्वरूप में अवस्थित रह जाता है।पुन? ज्ञानी पुरुष के सम्यक् दर्शन को दूसरे शब्दों में बताते हुये कहते हैं
English Translation By Swami Sivananda
13.30 He sees, who sees that all actions are performed by Nature alone and that the Self is actionless.