Verse: 13,28
मूल श्लोक :
समं सर्वेषु भूतेषु तिष्ठन्तं परमेश्वरम्।विनश्यत्स्वविनश्यन्तं यः पश्यति स पश्यति।।13.28।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।13.28।।जो नष्ट होते हुए सम्पूर्ण प्राणियोंमें परमात्माको नाशरहित और समरूपसे स्थित देखता है? वही वास्तवमें सही देखता है।
।।13.28।। जिस अधिष्ठान पर क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के परस्पर मिथ्या तादात्म्य की क्रीड़ा और परिणामत दुखपूर्ण संसार की प्रतीति होती है? वह एक परमेश्वर ही है? जो भूतमात्र में समभाव से स्थित है? जैसे समस्त तरंगों में जल होता है।नश्वर भूतों में अनश्वर केवल सतही दृष्टि से निरीक्षण करने वाले पुरुष को जगत् में निरन्तर परिवर्तन होता दिखाई देगा। वस्तुएं स्वभावत परिवर्तित होती रहती हैं और उनके परस्पर के सम्बन्ध भी। परिवर्तन होना यह वैषयिक और वैचारिक दोनों ही जगतों का स्थायी धर्म है। इस जगत् की तुलना से कहा गया है कि इन सबमें वह परमेश्वर नित्य और अविकारी अधिष्ठान है? जिसके कारण ये सब परिवर्तन जाने जाते हैं।जन्म? वृद्धि? व्याधि? क्षय और मृत्यु ये वे विकार हैं? जो प्रत्येक अनित्य वस्तु को प्राप्त होते हैं। जिसकी उत्पत्ति हुई हो? उसे ही आगे के विकारों से भी गुजरना पड़ेगा। यहाँ परमेश्वर को अविनाशी कहकर उसके पूर्व के विकारों का भी अभाव सूचित किया गया है। यह अविनाशी चैतन्य ही नाश का प्रकाशक और जगत् का आधार है? जैसे रूपान्तरित होने वाले आभूषणों का आधार स्वर्ण है।वह पुरुष जो इस सम और अविनाशी परमेश्वर को समस्त विषम और विनाशी भूतों में पहचानता है? वही पुरुष वास्तव में उसे देखता है जिसे देखना चाहिए। यहाँ देखने से तात्पर्य आत्मानुभव से है।भौतिक जगत् की वस्तुएं इन्द्रियगोचर होती हैं? जब कि भावनाओं और विचारों का ज्ञान क्रमश मन और बुद्धि से होता है। इसी प्रकार आत्मबोध भी आध्यात्मिक ज्ञानचक्षु से होता है? चर्मचक्षु से नहीं। जैसे हमारे नेत्र विचारों को नहीं देख सकते वैसे ही मन और बुद्धि आत्मा को नहीं देख सकते। स्थूल के द्वारा सूक्ष्म का दर्शन नहीं हो सकता। सूक्ष्मतम आत्मा समस्त उपाधियों से अतीत है।जो (इस समतत्त्व को) देखता है? वही (वास्तव में) देखता है यह कथन वेदान्त की विशेष वाक्यशैली है? जो अत्यन्त प्रभावपूर्ण है। सभी लोग देखते हैं? परन्तु पारमार्थिक सत्य को नहीं। उनके इस विपरीत दर्शन से ही उनके प्रमाणों (ज्ञान के कारणों) में दोष का अस्तित्व सिद्ध होता है। विभ्रम और वस्तु का अन्यथा दर्शन? मिथ्या कल्पनाएं और विक्षेप ये सब वस्तु के यथार्थ स्वरूप को आच्छादित कर देते हैं। इसलिए? योगेश्वर श्रीकृष्ण विशेष बल देकर कहते हैं कि जो पुरुष इस सम सत्य को देखता है वही वास्तव में देखता है। शेष लोग तो भ्रान्ति में पड़े रहते हैं।अब यथोक्त सम्यक् दर्शन श्रेष्ठ फल को दर्शाकर उसकी स्तुति करते हैं
English Translation By Swami Sivananda
13.28 He sees, who sees the Supreme Lord, existing eally in all beings, the unperishing within the perishing.