Verse: 13,26
मूल श्लोक :
अन्ये त्वेवमजानन्तः श्रुत्वाऽन्येभ्य उपासते।तेऽपि चातितरन्त्येव मृत्युं श्रुतिपरायणाः।।13.26।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।13.26।।दूसरे मनुष्य इस प्रकार (ध्यानयोग? सांख्ययोग? कर्मयोग? आदि साधनोंको) नहीं जानते? केवल (जीवन्मुक्त महापुरुषोंसे) सुनकर उपासना करते हैं? ऐसे वे सुननेके परायण मनुष्य भी मृत्युको तर जाते हैं।
।।13.26।। उत्तम और मध्यम अधिकारियों के लिए उपयुक्त मार्गों को बताने के पश्चात् अब मन्द बुद्धि साधकों के लिए गीताचार्य एक उपाय बताते हैं।अन्यों से श्रवण कुछ ऐसे भी लोग होते हैं? जो ध्यान? सांख्य और कर्मयोग इन तीनों में से किसी एक को भी करने में असमर्थ होते हैं। उनके विकास के लिए एकमात्र उपाय यह है कि उनको किसी आचार्य से,पूजा या उपासना के विषय में श्रवण कर तदनुसार ईश्वर की आराधना करनी चाहिए।वे भी मृत्यु को तर जाते हैं जगत् में यह देखा जाता है कि जिनकी बुद्धि मन्द होती है? उनमें श्रद्धा का आधिक्य होता है। अत? यदि ऐसे मन्दबुद्धि साधक श्रद्धापूर्वक उपदिष्ट प्रकार से उपासना करें? तो वे भी इस अनित्य मृत्युरूप संसार को पार करके नित्य तत्त्व का अनुभव कर सकते हैं। देह के अन्त को ही मृत्यु नहीं समझना चाहिए। यह शब्द उसके व्यापक अर्थ में यहाँ प्रयुक्त किया गया है। अनित्य? अनात्म उपाधियों के साथ तादात्म्य करने से हम भी उनके परिवर्तनों से प्रभावित होते रहते हैं। यह परिवर्तन का दुखपूर्ण अनुभव ही मृत्यु कहलाता है। इनसे भिन्न नित्य अविकारी आत्मा को जानना ही मृत्यु को तर जाना है? अर्थात् सभी परिवर्तनों में अविचलित और अप्रभावित रहना है श्री शंकराचार्य कहते हैं कि स्वयं विवेकरहित होते हुए भी केवल परोपदेश के श्रवण से ही यदि ये साधक मोक्ष को प्राप्त होते हैं? तो फिर प्रमाणपूर्वक विचार के प्रति स्वतन्त्र विवेकी साधकों के विषय में कहना ही क्या है कि वे मोक्ष को प्राप्त करते हैं।इन सब साधनों के द्वारा हमें कौन से साध्य का सम्पादन करना है इस पर कहते हैं
English Translation By Swami Sivananda
13.26 Others also, not knowing thus, worship, having heard of It from others; they, too, cross beyond death, regarding what they have heard as the Supreme refuge.