Verse: 13,19
मूल श्लोक :
इति क्षेत्रं तथा ज्ञानं ज्ञेयं चोक्तं समासतः।मद्भक्त एतद्विज्ञाय मद्भावायोपपद्यते।।13.19।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।13.19।।इस प्रकार क्षेत्र? ज्ञान और ज्ञेयको संक्षेपसे कहा गया। मेरा भक्त इसको तत्त्वसे जानकर मेरे भावको प्राप्त हो जाता है।
।।13.19।। अब तक? गीतोपदेश में जो कुछ विवेचन किया गया है? वह वस्तुत वैदिक सिद्धांत का ही प्रतिपादन है। महाभूतों से प्रारम्भ होकर धृति पर्यन्त क्षेत्र है। अमानित्वादि से तत्त्वज्ञानार्थ दर्शन तक ज्ञान का वर्णन है। और तत्पश्चात् के श्लोकों में ज्ञेय वस्तु का निर्देश किया गया है।अब? प्रश्न यह है कि इस ज्ञान का उत्तम अधिकारी कौन है भगवान् कहते हैं? जो मेरा भक्त है? वह मेरे स्वरूप को प्राप्त होता है। परन्तु यह भक्ति केवल भावुकतापूर्ण प्रेम ही नहीं है। जिसने क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के विवेक द्वारा यह स्वानुभव प्राप्त किया है कि एक वासुदेव ही भूतमात्र में क्षेत्रज्ञ के रूप में विराजमान हैं? वही साधक उत्तम भक्त है जो मेरे स्वरूप को प्राप्त होता है।क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ का ही वर्णन? अगले श्लोक में? प्रकृति और पुरुष के रूप में किया जा रहा है
English Translation By Swami Sivananda
13.19 Thus the field, as well as knowledge and the knowable have been briefly stated. My devotee, knowing this, enters into My Being.