Verse: 13,14
मूल श्लोक :
सर्वतः पाणिपादं तत्सर्वतोऽक्षिशिरोमुखम्।सर्वतः श्रुतिमल्लोके सर्वमावृत्य तिष्ठति।।13.14।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।13.14।।वे (परमात्मा) सब जगह हाथों और पैरोंवाले? सब जगह नेत्रों? सिरों और मुखोंवाले तथा सब,जगह कानोंवाले हैं। वे संसारमें सबको व्याप्त करके स्थित हैं।
।।13.14।। सर्वत पाणिपादम् उत्तम अधिकारी तो आत्मा के निर्गुण स्वरूप को पहचान लेता है? परन्तु मध्यम अधिकारी को अज्ञात और अव्यक्त का बोध? ज्ञात और व्यक्त वस्तुओं के द्वारा कराने में सरलता होती है। यद्यपि प्रणियों के हाथ और पैर जड़ तत्त्व के बने हैं? तथापि वे चेतन और कार्यक्षम प्रतीत हो रहे हैं। इन सबके पीछे इन्हें चेतनता प्रदान करने वाला आत्मतत्त्व सर्वत्र एक ही है। इसीलिए यहाँ कहा गया है कि ब्रह्म समस्त हाथ और पैरों को धारण करने वाला है।इसी प्रकार? समस्त नेत्र? शिर और मुख भी इस चैतन्य के कारण ही स्वव्यापार करने में समर्थ होते हैं। इसलिए आत्मा का निर्देश इस प्रकार करते हैं कि वह सब ओर नेत्र? शिर और मुख वाला है। चैतन्य से धारण किये होने पर ही प्राणियों में विषय ग्रहण तथा विचार करने की क्रियाएं होती रहती हैं। अत चैतन्य ब्रह्म सब ओर से श्रोत वाला कहा गया है।यह सबको व्याप्त करके स्थित है यहाँ जब आत्मा के उपाधियुक्त स्वरूप और प्रभाव को दर्शाया गया है? तो कोई यह मान सकता है कि जहाँ उपाधियाँ हैं? वहीं पर आत्मा का अस्तित्व है और अन्यत्र नहीं। इस प्रकार की विपरीत धारणा को दूर करने के लिए यहाँ पर अत्यन्त उचित ही कहा गया है कि वह परम सत्य सबको व्याप्त करके स्थित है। यह श्लोक वैदिक साहित्य से परिचित विद्यार्थियों को ऋग्वेद के प्रसिद्ध पुरुषसूक्तम् का स्मरण कराता है।भगवान् आगे कहते हैं
English Translation By Swami Sivananda
13.14 With hands and feet everywhere, with eyes, heads and mouths everywhere, with ears everywhere, He exists in the worlds enveloping all.