Verse: 11,41
मूल श्लोक :
सखेति मत्वा प्रसभं यदुक्तं हे कृष्ण हे यादव हे सखेति।अजानता महिमानं तवेदं मया प्रमादात्प्रणयेन वापि।।11.41।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।11.41।।आपकी महिमा और स्वरूपको न जानते हुए मेरे सखा हैं ऐसा मानकर मैंने प्रमादसे अथवा प्रेमसे हठपूर्वक (बिना सोचेसमझे) हे कृष्ण हे यादव हे सखे इस प्रकार जो कुछ कहा है और हे अच्युत हँसीदिल्लगीमें? चलतेफिरते? सोतेजागते? उठतेबैठते? खातेपीते समयमें अकेले अथवा उन सखाओं? कुटुम्बियों आदिके सामने मेरे द्वारा आपका जो कुछ तिरस्कार किया गया है? वह सब अप्रमेयस्वरूप आपसे मैं क्षमा करवाता हूँ।
।।11.41।। See commentary under 11.42
English Translation By Swami Sivananda
11.41 Whatever I have presumptuously said from carelessness or love, addressing Thee as O Krishna! O Yadava! O Friend! regarding Thee merely as a friend, unknowing of this, Thy greatness.