Verse: 11,40
मूल श्लोक :
नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व।अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः।।11.40।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।11.40।।हे सर्व आपको आगेसे नमस्कार हो पीछेसे नमस्कार हो सब ओरसे ही नमस्कार हो हे अनन्तवीर्य अमित विक्रमवाले आपने सबको समावृत कर रखा है अतः सब कुछ आप ही हैं।
।।11.40।। परमात्मा सर्वत्र व्याप्त है अन्तर्बाह्य? अधउर्ध्व? समस्त दिशाओं में व्याप्त है। उससे रिक्त कोई स्थान नहीं है। यह कोई अकेले अर्जुन का मौलिक विचार नहीं है। उपनिषद् के महान् ऋषिगण तो इस अनुभव में अखण्ड वास करते थे।जिस परमात्मा को अर्जुन अपने मन से सब दिशाओं में प्रणाम करता है? वह परमात्मा न केवल आकाश के समान सर्वव्यापक ही है? वरन् वह सम्पूर्ण सार्मथ्य एवं विक्रम का स्रोत भी है। जहाँ कहीं भी कार्य़ करने की प्रेरणा या सफलता पाने की क्षमता दृष्टिगोचर होती हैं? वह सब अनन्तवीर्य और अमितविक्रम परमात्मा की ही एक झलक है? किरण है। परमात्मा सत्स्वरूप से सर्वत्र समस्त वस्तुओं और प्राणियों में विद्यमान है क्योंकि सत् के बिना किसी भी वस्तु का अस्तित्व नहीं हो सकता? इसलिए? वस्तुत परमात्मा ही सर्वरूप है। जल ही सब तरंगें हैं और मिट्टी ही सब घट है।क्योंकि आपके महात्म्य के अज्ञान के कारण? पूर्व में मैंने आपके प्रति अपराध किया है? इसलिए
English Translation By Swami Sivananda
11.40 Salutations to Thee, in front and behind! Salutations to Thee on every side! O All!! Thou infinite in power and prowess, pervadest all; wherefore Thou art all.