Verse: 11,4
मूल श्लोक :
मन्यसे यदि तच्छक्यं मया द्रष्टुमिति प्रभो।योगेश्वर ततो मे त्वं दर्शयाऽत्मानमव्ययम्।।11.4।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।11.4।।हे प्रभो मेरे द्वारा आपका वह परम ऐश्वर रूप देखा जा सकता है -- ऐसा अगर आप मानते हैं तो हे योगेश्वर आप अपने उस अविनाशी स्वरूपको मुझे दिखा दीजिये।
।।11.4।। पूर्व श्लोक में व्यक्त की गई इच्छा को ही यहाँ पूर्ण नम्रता एवं सम्मान के साथ दोहराया गया है। अपने सामान्य व्यावहारिक जीवन में भी हम सम्मान पूर्वक प्रार्थना अथवा नम्र अनुरोध करते समय इस प्रकार की भाषा का प्रयोग करते हैं? जैसे यदि मुझे कुछ कहने की अनुमति दी जाये? मुझ पर बड़ी कृपा होगी? मुझे प्रस्तुत करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है इत्यादि। पाण्डव राजपुत्र अर्जुन? मानो? पुनर्विचार के फलस्वरूप पूर्व प्रयुक्त अपनी सैनिकी भाषा को त्यागकर नम्रभाव से अनुरोध करता है कि? यदि आप मुझे योग्य समझें? तो अपने अव्यय रूप का मुझे दर्शन कराइये।यहाँ बतायी गयी नम्रता एवं सम्मान किसी निम्न स्तर की इच्छा को पूर्ण कराने के लिए झूठी भावनाओं का प्रदर्शन नहीं है। भगवान् को सम्बोधित किये गये विशेषणों से ही यह बात स्पष्ट हो जाती है। प्रथम पंक्ति में अर्जुन भगवान् को प्रभो कहकर और फिर? योगेश्वर के नाम से सम्बोधित करता है। यह इस बात का सूचक है कि अर्जुन को अब यह विश्वास होने लगा था कि श्रीकृष्ण केवल कोई मनुष्य नहीं हैं? जो अपने शिष्य को मात्र बौद्धिक सन्तोष अथवा आध्यात्मिक प्रवचन देने में ही समर्थ हों। वह समझ गया है कि श्रीकृष्ण तो स्वयं प्रभु अर्थात् परमात्मा और योगेश्वर हैं। इसलिए यदि वे यह समझते हैं कि उनका शिष्य अर्जुन विराट् के दर्शन से लाभान्वित हो? तो वे उसकी इच्छा को पूर्ण करने में सर्वथा समर्थ हैं।यदि कोई उत्तम अधिकारी शिष्य एक सच्चे गुरु से कोई नम्र अनुरोध करता है? तो वह कभी भी गुरु के द्वारा अनसुना नहीं किया जाता है अत
English Translation By Swami Sivananda
11.4 If Thou, O Lord, thinkest it possible for me to see it, do Thou, then, O Lord of the Yogins, show me Thy imperishable Self.