Verse: 11,39
मूल श्लोक :
वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्कः प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च।नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते।।11.39।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।11.39।।आप ही वायु? यमराज? अग्नि? वरुण? चन्द्रमा? दक्ष आदि प्रजापति और प्रपितामह (ब्रह्माजीके भी पिता) हैं। आपको हजारों बार नमस्कार हो नमस्कार हो और फिर भी आपको बारबार नमस्कार हो नमस्कार हो
।।11.39।। अब तक अर्जुन भगवान् श्रीकृष्ण के पर? अक्षर और निर्गुण स्वरूप का स्तुतिगान कर रहा था। एक उपासक के मन में यह प्रश्न आ सकता है कि इस सर्वातीत निर्गुण स्वरूप सत्य का उसके अपने इष्ट देवता (उपास्य) के साथ निश्चित रूप से क्या सम्बन्ध है। प्राचीनकाल में प्राय प्राकृतिक शक्तियों के अधिष्ठातृ देवताओं की श्रद्धापूर्वक आराधना? प्रार्थना और उपासना की जाती थी।वेदकालीन साधकगण अन्तकरण की शुद्धि तथा एकाग्रता के लिए जिन देवताओं की उपासना करते थे? उनमें प्रमुख वायु? यम? अग्नि? वरुण (जल का देवता)? शशांङ्क (चन्द्रमा) और सृष्टिकर्ता प्रजापति। इन देवताओं का आह्वान स्त्रोतगान? पूजा तथा यज्ञयागादि के द्वारा किया जाता था। उस काल के शिक्षित वर्ग के लोगों के मन को भी ईश्वर के यही रूप इष्ट थे। प्राय सर्वत्र? लोग साधन को ही साध्य (लक्ष्य) समझने की गलती करते हैं। परन्तु? यहाँ अर्जुन प्रामाणिक ज्ञान के आधार पर यह दर्शाता है कि वस्तुत अनन्त तत्त्व ही समस्त देवताओं का मूल स्वरूप है। तथापि उस अनन्त को अर्जुन भगवान् श्रीकृष्ण के रूप में देखता है।वेदान्त का यह सिद्धांत है कि एक ही परमात्मा विविध उपाधियों के द्वारा व्यक्त होकर इन देवताओं के रूप में प्राप्त होता है। वर्तमान काल में भी भक्तगण अपने इष्ट देवता के रूप में परमेश्वर का आह्वान कर अपने इष्ट को ही देवाधिदेव कहते हैं। इस देवेश को ही अर्जुन प्रणाम करता है।
English Translation By Swami Sivananda
11.39 Thou art Vayu, Yama, Agni, Varuna, the moon, the Creator, and the great-grandfather. Salutations, salutations unto Thee, a thousand times, and again salutations, salutations unto Thee.