Verse: 11,36
मूल श्लोक :
अर्जुन उवाचस्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या जगत् प्रहृष्यत्यनुरज्यते च।रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसङ्घाः।।11.36।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।11.36।।अर्जुन बोले -- हे अन्तर्यामी भगवन् आपके नाम? गुण? लीलाका कीर्तन करनेसे यह सम्पूर्ण जगत् हर्षित हो रहा है और अनुराग(प्रेम) को प्राप्त हो रहा है। आपके नाम? गुण आदिके कीर्तनसे भयभीत होकर राक्षसलोग दसों दिशाओंमें भागते हुए जा रहे हैं और सम्पूर्ण सिद्धगण आपको नमस्कार कर रहे हैं। यह सब होना उचित ही है।
।।11.36।। कविता के भावव्यंजय आकर्षण के द्वारा? एक बार पुन? हमें सम्पत्ति और वैभव से सम्पन्न सुखद राजप्रासाद से उठाकर युद्धभूमि के कोलाहल और आश्चर्यमय विराटरूप की ओर ले जाया जाता है। दृश्य यह है कि अर्जुन दोनों हाथ जोड़े हुए? भयकम्पित और विस्मय से अवरुद्ध कण्ठ से भगवान् की स्तुति कर रहा है। यह चित्र अर्जुन की मनस्थिति का स्पष्ट परिचायक है। ग्यारह श्लोकों के स्तुतिगान का यह खण्ड हिन्दू धर्म में उपलब्ध सर्वोत्तम प्रार्थनाओं का प्रतिनिधित्व करता है। वस्तुत सामान्य लोगों को यह विदित है कि संकल्पना? सुन्दरता? लय और अर्थ की गम्भीरता की दृष्टि से इससे अधिक श्रेष्ठ किसी सार्वभौमिक प्रार्थना की कल्पना नहीं की जा सकती है।इस खण्ड में? हम देखते हैं कि अर्जुन की तत्त्वदर्शन की क्षमता शनैशनै इस विराट रूप के पीछे दिव्य अनन्त सत्य को पहचान रही है। जब कोई व्यक्ति दर्पण में अपना प्रतिबिम्ब देख रहा होता है? तब सामान्यत उसे दर्पण की सतह का भान भी नहीं होता है? परन्तु यदि वह ध्यान उस सतह पर केन्द्रित करे तो उसके लिए वह प्रतिबिम्ब प्राय लुप्तसा ही हो जाता है। यहाँ भी? अर्जुन जब तक उस विश्वरूप के प्रत्येक रूप को ही देखने में व्यस्त रहा? तब तक इस विशाल रूप के सारतत्त्व अनन्त स्वरूप को वह नहीं पहचान सका। अब इस खण्ड से यह स्पष्ट होता है कि अर्जुन ने विराट रूप के वास्तविक सत्य और अर्थ को पहचानना प्रारम्भ कर दिया था।
English Translation By Swami Sivananda
11.36 Arjuna said It is meet, O Krishna, that the world delights and rejoices in Thy praise; demons fly in fear to all arters and the hosts of the perfected ones bow to Thee.