Verse: 11,30
मूल श्लोक :
लेलिह्यसे ग्रसमानः समन्ता ल्लोकान्समग्रान्वदनैर्ज्वलद्भिः।तेजोभिरापूर्य जगत्समग्रं भासस्तवोग्राः प्रतपन्ति विष्णो।।11.30।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।11.30।।आप अपने प्रज्वलित मुखोंद्वारा सम्पूर्ण लोकोंका ग्रसन करते हुए उन्हों चारों ओरसे बारबार चाट रहे हैं और हे विष्णो आपका उग्र प्रकाश अपने तेजसे सम्पूर्ण जगत्को परिपूर्ण करके सबको तपा रहा है।
।।11.30।। महाऊर्मि के कुछ श्लोकों की रचना के बाद व्यासजी पुन अपने पूर्व के विषय को प्रारम्भ करते हैं। जगत् के समस्त प्राणीवर्ग काल के मुख में प्रवेश करके नष्ट हुए जा रहे हैं। इस काल तत्त्व की क्षुधा कभी न शान्त होने वाली है। समस्त लोकों का ग्रसन करते हुए आप उनका आस्वाद ले रहे हैं।वस्तुत? यह श्लोक सृष्टि? स्थिति और संहार के तीन कर्ताओं के पीछे के सिद्धान्त को स्पष्ट करता है। यद्यपि हम इन तीनों की भिन्नभिन्न रूप से कल्पना करते हैं? किन्तु वास्तव में ये तीनों एक ही प्रक्रिया के तीन पहलू मात्र हैं। हम पहले भी विस्तार से देख चुके हैं कि सर्वत्र विद्यमान अस्तित्त्व का मूल रहस्य है रचनात्मक विध्वंस।चलचित्र गृह में विभिन्न चित्रों की एक रील को प्रकाशवृत्त के सामने चलाया जाता है। उसके सामने से दूर हुये चित्र को हम मृत कह सकते हैं और सम्मुख उपस्थित हुये को जन्मा हुआ मान सकते हैं। निरंतर हो रही जन्ममृत्यु की इस धारा के कारण सामने के परदे पर एक अखण्ड कथानक का आभास निर्माण होता है। देश और काल से अवच्छिन्न होकर वस्तुएं? प्राणी मात्र? घटनाएं और परिस्थितियाँ हमारे अनुभव में आकर चली जाती हैं और उनके इस आवागमन के सातत्य को हम अस्तित्त्व या जीवन कहते हैं।उपर्युक्त विचार को पारस्परिक त्रिमूर्ति ब्रह्मा? विष्णु और महेश की भाषा में पुराणों में व्यक्त किया गया है।इस ज्ञान की दृष्टि से जब अर्जुन उस प्रकाशस्वरूप देदीप्यमान समष्टि रूप को देखता है? तब वह उस विराट् के उग्र प्रकाश से प्राय अन्धवत् हो जाता है।क्योंकि आप उग्ररूप हैं? इसलिए
English Translation By Swami Sivananda
11.30 Thou lickest up, devouring all the worlds on every side with Thy flaming mouths. Thy fierce rays, filling the whole world with radiance, are burning, O Vishnu!