Verse: 10,6
मूल श्लोक :
महर्षयः सप्त पूर्वे चत्वारो मनवस्तथा।मद्भावा मानसा जाता येषां लोक इमाः प्रजाः।।10.6।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।10.6।।सात महर्षि और उनसे भी पूर्वमें होनेवाले चार सनकादि तथा चौदह मनु -- ये सबकेसब मेरे मनसे पैदा हुए हैं और मेरेमें भाव (श्रद्धाभक्ति) रखनेवाले हैं? जिनकी संसारमें यह सम्पूर्ण प्रजा है।
।।10.6।। इस अध्याय के दूसरे श्लोक में जिस सिद्धांत का संकेत मात्र किया गया है कि किस प्रकार सप्तर्षि? सनकादि चार कुमार और चौदह मनु? परमेश्वर के मन से उत्पन्न हुए हैं। ये सभी मिलकर जगत् के उपादान और निमित्त कारण हैं? क्योंकि यहाँ कहा गया है? इनसे यह सम्पूर्ण प्रजा उत्पन्न हुई है।सप्तर्षि जिन्हें पुराणों में मानवीय रूप में चित्रित किया गया है? वे सप्तर्षि अध्यात्मशास्त्र की दृष्टि से महत् तत्त्व? अहंकार और पंच तन्मात्राएं हैं। इन सब के संयुक्त रूप को ही जगत् कहते हैं।व्यक्तिगत दृष्टि से? सप्तर्षियों के रूपक का आशय समझना बहुत सरल है। हम जानते हैं कि जब हमारे मन में कोई संकल्प उठता है? तब वह स्वयं हमें किसी भी प्रकार से विचलित करने में समर्थ नहीं होता। परन्तु? किसी एक विषय के प्रति जब यह संकल्प केन्द्रीभूत होकर कामना का रूप ले लेता है? तब कामना में परिणित वही संकल्प अत्यन्त शक्तिशाली बनकर हमारी शान्ति और सन्तुलन को नष्ट कर देता है। ये संकल्प ही बाहर प्रक्षेपित होकर पंच विषयों का ग्रहण और उनके प्रति हमारी प्रतिक्रियायें व्यक्त कराते हैं। यह संकल्पधारा और इसका प्रक्षेपण ये दोनों मिलकर हमारे सुखदुख पूर्ण यशअपयश तथा प्रयत्न और प्राप्ति के छोटे से जगत् के निमित्त और उपादान कारण बन जाते हैं।पूर्वकाल के चार (सनकादि) और मनु श्री शंकराचार्य अपने भाष्य में इस प्रकार पदच्छेद करते हैं कि पूर्वकाल सम्बन्धी और चार मनु। यहाँ इसका आध्यात्मिक विश्लेषण करना उचित है जिसके लिए हमें दूसरी पंक्ति में आधार भी मिलता है। भगवान् कहते हैं? ये सब मेरे मन से अर्थात् संकल्प से ही प्रकट हुए हैं।पुराणों में ऐसा वर्णन किया गया है कि सृष्टि के प्रारम्भ में ही सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी से चार मानस पुत्र सनत्कुमार? सनक? सनातन और सनन्दन का जन्म हुआ। हममें से प्रत्येक (व्यष्टि) व्यक्ति में निहित सृजन शक्ति अथवा सृजन की प्रवृत्ति के माध्यम से व्यक्त चैतन्य ही व्यष्टि सृष्टि का निर्माता है। यह सृजन की प्रवृत्ति अन्तकरण के चार भागों में व्यक्त होती है तभी किसी प्रकार का निर्माण कार्य होता है। वे चार भाग हैं संकल्प (मन)? निश्चय (बुद्धि)? पूर्वज्ञान का स्मरण (चित्त) और कर्तृत्वाभिमान (अहंकार)। मन? बुद्धि? चित्त और अहंकार इन चारों को उपर्युक्त चार मानस पुत्रों के द्वारा इंगित किया गया है।इस प्रकार एक ही श्लोक में समष्टि और व्यष्टि की सृष्टि के कारण बताए गए हैं। समष्टि सृष्टि की उत्पत्ति एवं स्थिति के लिए महत् तत्त्व? अहंकार और पंच तन्मात्राएं कारण हैं? जबकि व्यष्टि सृष्टि का निर्माण मन? बुद्धि? चित्त और अहंकार की क्रियाओं से होता है।संक्षेप में? सप्तर्षि समष्टि सृष्टि के तथा चार मानस पुत्र व्यष्टि सृष्टि के निमित्त और उपादान कारण हैं।व्यष्टि और समष्टि की दृष्टि से? सृष्टि के अभिप्राय को समझने की क्या आवश्यकता है सुनो --
English Translation By Swami Sivananda
10.6 The seven great sages, the ancient four and also the Manus, possessed of powers like Me (on account of their minds being fixed on Me), were born of (My) mind; from them are these creatures born in this world.