Verse: 10,35
मूल श्लोक :
बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम्।मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकरः।।10.35।।
Hindi Translation By Swami Ramsukhdas
।।10.35।।गायी जानेवाली श्रुतियोंमें बृहत्साम और वैदिक छन्दोंमें गायत्री छन्द मैं हूँ। बारह महीनोंमें मार्गशीर्ष और छः ऋतुओंमें वसन्त मैं हूँ।
।।10.35।। मैं सामों में बृहत्साम हूँ भगवान् ने पहले कहा था कि? वेदों में सामवेद मैं हूँ। अब यहाँ सामवेद में भी विशेषता बताते हैं कि मैं सामों में बृहत्साम हूँ। ऋग्वेद की जिन ऋचाओं को सामवेद में गाया जाता है? उन्हें साम कहते हैं। उनमें एक साम वह है? जिसमें इन्द्र की सर्वेश्वर के रूप में स्तुति की गई है? जिसे बृहत्साम कहते हैं? जिसका उल्लेख भगवान ने यहाँ किया है। साममन्त्रों का गायन विशिष्ट पद्धति का होने के कारण अत्यन्त कठिन है? जिन्हें सीखने के लिए वर्षों तक गुरु के पास रहकर साधना करनी पड़ती है।मैं छन्दों में गायत्री हूँ वेद मन्त्रों की रचना विविध छन्दों में की गई है। इन छन्दों में गायत्री छन्द मैं हूँ। जन्मत सभी मनुष्य संस्कारहीन होते हैं। हिन्दू धर्म में बालक का उपनयन संस्कार गायत्री मन्त्र के द्वारा ही होता है? जिसकी रचना गायत्री छन्द में है। अत इस छन्द को विशेष महत्व प्राप्त है। गायत्री में चौबीस अक्षर हैं और इस मन्त्र के द्वारा सविता देवता की उपासना की जाती है। ब्राह्मण लोग प्रातकाल और सांयकाल संध्यावन्दन के समय इस मन्त्रोच्चार के द्वारा सूर्य को अर्ध्य प्रदान करते हैं।विश्व के किसी भी धर्म में किसी एक मन्त्र का जप इतने अधिक भक्तों द्वारा निरन्तर इतने अधिक काल से नहीं किया गया है जितना कि गायत्री छन्द में बद्ध गायत्री मन्त्र का। यह मन्त्र अत्यन्त शक्तिशाली एवं प्रभावशाली माना जाता है।मैं मासों में मार्गशीर्ष हूँ अंग्रेजी महीनों के अनुसार दिसम्बर और जनवरी के भाग मार्गशीर्ष हैं। भारत में? इस मास को पवित्र माना गया है। जलवायु की दृष्टि से भी यह सुखप्रद होता है? क्योंकि इस मास में न वर्षा की आर्द्रता या सांद्रता होती है और न ग्रीष्म ऋतु की उष्णता।मैं ऋतुओं में बसन्त हूँ प्रकृति को सुस्मित करने वाली बसन्त ऋतु मैं हूँ। समस्त सृष्टि की दृश्यावलियों को अपने सतरंगी सन्देश और सुरभित संगीत से हर्ष विभोर करने वाला ऋतुराज पर्वत पुष्पों के परिधान पहनते हैं। भूमि हरितवसना होती है। सरोवर एवं जलाशय उत्फुल्ल कमलों की हंसी से खिलखिला उठते हैं। मैदानों में हरीतिमा के गलीचे बिछ जाते हैं। सभी हृदय किसी उत्सव की उमंग से परिपूर्ण हो जाते हैं। सृष्टि के हर्षातिरेक को राजतिलक करने के लिए चन्द्रिका स्वयं को और अधिक सावधानी से सँवारती है।मुझे न केवल भव्य और दिव्य में ही देखना है और न केवल सुन्दर और आकर्षक में? वरन् हीनतम से हीन में भी मुझे पहचानना है मैं हूँ? जो हूँ सुनो
English Translation By Swami Sivananda
10.35 Among the hymns also I am the Brihatsaman; among metres Gayatri am I; among the montsh I am the Margasirsha; among the seasons (I am) the flowery season.